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________________ प्रश्नों के उत्तर ... ३७० . ___ की है । वह कहता है कि मांस शब्द में दो पद हैं-- मां और स । 'मां' . __ का अर्थ होता है- मुझ को। स. 'वह' इस अर्थ का बोधक है। दोनों :. ... पदों को मिला कर यह फलितार्थ होता है कि जिसको मैं खाता हूं, वह .. भी कभी मुझे खाएगा। मांस - शब्द की. यह व्युत्पत्ति स्पष्टतया प्रमाणित कर रही है कि मांसाहार हेय है, त्याज्य है, दुःखों का उत्पादक है, तथा जन्म-मरण की परम्परा का वर्धक है। धर्मशास्त्रों ने मांसाहार का बड़ा ज़बर्दस्त विरोध किया है, साथ में उसके त्याग को बड़ा सुखद प्रशस्त. और सुगतिप्रद मानो है। इस संबंध में शास्त्रीय प्रमाण तो। - . बहुत उपस्थित किए जा सकते हैं, किन्तु विस्तारभय से अधिक न लिख . कर कुछ एक शास्त्रीय प्रमाणों का वर्णन नीचे की पंक्तियों में किया .. . जायगा । . . ... .. . ... ... ...... .. धर्मशास्त्र और मांसाहार ... जैनशास्त्र श्री स्थानांग सूत्र के चतुर्थ स्थान में नरकायु के चार कारणं बतलाए हैं- महा प्रारंभ-हिसा. २-महा परिग्रह-लोभ लालच, ३-पञ्चेन्द्रिय प्राणों का वध, ४-मांसाहार । इन कारणों में मांसाहार को स्पष्ट रूप से नरक का कारण माना है। और इसी सूत्र के प्रायु वन्ध-कारण-प्रकरण में जीवदया को मनुष्यायु के बंन्ध का कारण स्वी. कार किया है। आचारांग सूत्र के अध्याय द्वितीय तथा उद्देशक तृतीय में .. लिखा है कि संसार के सभी जीवों को अपनी प्रायु प्रिय है * । • सभी सुख चाहते हैं। सभी दुःख से घबराते हैं। सब को वध अप्रिय .. लगता है और जीवन :प्रिय लगता है। सब दीर्घायु चाहते हैं । __ * सब्वे पाणा पियाउया,सुहसाया,दुक्खपडिकूला, अप्पियवहा, पियजीवणो, जीविउकामा, सन्वेसिं जीवियं पियं ।। . .. " .. . . . . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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