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________________ . minimini.. ., . . . . ५४५ द्वादश अध्याय प्रिय) होता है । वह साधु ही क्या जो कष्ट से भयभीत हो? वस्तुतः साधू की साधना का निर्णय उसकी परीक्षा के अनन्तर ही किया जा .. . . ..सकता है। 1. T. ... . . केशलोच - जैन साधु को एक परीक्षा है। केशलोच के द्वारा - साधु की सहिष्णुता और सहनशीलता का पता चल जाता है। साधु कष्ट सहने में कितनो क्षमता रखता है ? और समय आने पर कष्टों को झेल सकेगा या नहीं ? प्रादि सभी बातें केश लोच के द्वारा मालूम ., पड़ जाती हैं। साधु-जीवन के प्रति साधु कितना दृढ़ है तथा कितना स्थिर है ? इस बात का भी लोच के द्वारा आसानो से बोध हो । जाता .. साध जीवन में मान और अपमान दोनों की वर्षा होती है। ..अच्छी और बुरी दोनों घड़िया उसके जीवन में आता है। जब सम्मान का अवसर प्राता है तो वह सर्वत्र सम्मान को प्राप्त करता है। आहार .भी उसे सम्मान के साथ मिलता है और वस्त्रादि की प्राप्ति भी उसे ... immisi n aarimmsmirmirirrrrriammmm.. * श्री. कल्प सूत्र की २४वीं समाचारी में लिखा है - वासावास पज्जोसवियाण नो कप्पइ निरगन्थाणं निग्गन्यीण वा पर पज्जोसवणाग्रो गोलोममप्प.माण मित्तेऽवि केसे तं रयणि उवायणा वित्तए... । अर्थात् साधुओं को साध्वियों .. को सम्वत्सरी से पहले-पहले केशलोच करवा लेना चाहिए । गोरोम से अधिक ..लम्वे केश नहीं रखने चाहिए. . श्री नशीय सूत्र के दशम उद्देश्य में लिखा है कि जो साधु, साध्वी सम्वत्सरी को गोरोम से अधिक तम्बे केश रखता है, उस को गुरु चातुर्मासिक.. प्रायश्चित्त आता है, उसे लगातार चार उपवास रखने पड़ते हैं । - जे भिक्खू. पज्जोसवणाए णोलमाइपि वालाई. उब्वायणावेइ उवायणावंतं वा साइज्जइ: .. .... । . . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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