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प्रश्नों के उत्तर ....... जैसा कठोर और निर्दय कृत्य जैन साधु की अहिंसा को कैसे जीवित रख सकता है ? ..... उत्तर-- सोना खरा है या खोटा ? यह परीक्षा होने पर ही जाना जा सकता है। बाहर के रंग रूप से सुवर्ण का कोई महत्त्व नहीं होता, वर्ण तो पीतल का भी सुवर्ण जैसा ही होता है । परन्तु पोतल कभी सोना नहीं कहा जा सकता। पोतल में परोक्षायों को सहन करने की क्षमता नहीं है। पीतल को प्राग में डाल दिया जाए तो वह काला पड़ जाता है। अपना स्वरूप भो.खो बठता है। सोने को ऐसी दशा नहीं. होती। सोने को ज्यों ज्यों प्राग में डाला जाए त्यो त्यों वह अधिक
तेजस्वी बनता चला जाता है। आग में पड़ कर सोना कभो मला या __काला नहीं पड़ता। तभी तो कहा जाता है-: ..
. 'माग में पड़ कर भी सोने की चमक जातो नहीं। .. ... साधु जीवन में कहां तक सत्यता है ? कौन साधु किस रूप में साधना की ज्योति से ज्योतित हो रहा है ? यह भी बिना परोक्षा के .. नहीं जाना जा सकता। साधु-जीवन की परिपक्वः साधुता उसको : परीक्षा के अनन्तर ही निर्धारित की जा सकती है। जो साधु अनकल - . परिषहों के आने पर समभाव से रहता है, संकट को उपस्थिति में
जरा डांवाडोल नहीं होता, विपम से विषम परिस्थितियों में समभाव :
की डोरी टटने नहीं देता। वही सच्चा साधु याः खरा साधु कहा जा ... सकता है। निःसन्देह ऐसा साधु ही साधुत्व को उच्च भूमिका प्राप्त
करने में सफल हो सकता है । किन्तु जो साधु जरा सी प्रतिकूलता में . बौखला उठता है, सामान्य से कष्ट के आ जाने पर आकुल-व्याकुल - हो जाता है, शान्ति खो बैठता है तो उसे साधु पद के महान् सिंहासन - पर कैसे विठलाया जा सकता है ? वह साधु नहीं स्वादुः (स्वाद