SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Nirvanvw प्रश्नों के उत्तर ५३४ में से कुछ का त्याग करना देश अव्यापार पौषध है और सभी कार्यों का त्याग करना सर्व अव्यापार पौषध है। उक्त चारों प्रकार के पौषध को देश या सर्व से ग्रहण करने को पौषधोपवास व्रत कहते हैं । जो पौषधोपवास व्रत देश से ग्रहण किया। जाता है, वह सामायिक के सहित भी किया जाता है, और आयंबिल, एकासन आदि के रूप में बिना सामायिक स्वीकार किए भी ग्रहण किया जाता है। परन्तु जो सर्प से स्वीकार किया जाता है, वह पूरे दिन-रात के लिए सामायिक के साथ अति सावध कार्यों से निवृत्त हो कर ही स्वीकार किया जाता है । उक्त व्रत को स्वीकार करने वाला व्यक्ति कोट-कमीज़ उतार कर चादर धारण करके मुंह पर मुखवस्त्रिका वांधकर २४ घण्टे धर्म स्थान में रहता है, अावश्यक कार्य के लिए बाहर जाना होता है तो नंगे पैर-नमें सिर जाता हैं, , रात को प्रमानिका या रजोहरण से जमीन साफ किए बिना चल फिर नहीं सकता. ने पलंग या चारपाई पर सो सकता है । यों कहना चाहिए कि वह पूरे दिन के लिए साधु की तरह त्याग वृत्ति में रहता है। उक्त व्रत स्वीकार करने वाले व्यक्ति को सदा पांच कार्यों से दूर . रहना चाहिए- . .. . ... १-पोषध के समय काम में लिए जाने वाले पाट, मासन, घास (तृण) आदि का विधिपूर्वक प्रतिलेखन (निरीक्षण) न करना। .... २. उपरोक्त वस्तुओं का विधिपूर्वक परिमार्जन नहीं करना। ..... ३-४-शरोर चिन्ता से निवृत्त होने के लिए मल-मूत्र त्याग करने . - के स्थान का भली भांति प्रतिलेखन और परिमार्जन नहीं करना * | .. :: ... * प्रतिलेखन और परिमार्जन में इतना अंतर है कि प्रतिलेखन दृष्टि से " किया जाता है और परिमार्जन रजोहरण या प्रमानिका से किया जाता
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy