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________________ एकादश अध्याय . .. .. ३-मर्यादित जगह के बाहर शब्द के द्वारा कार्य करने को प्रेरितः करना। ... ४-मर्यादित स्थान से बाहर रूप दिखा कर अपने विचार प्रकट करना। .: ५-मर्यादित स्थान के बाहर कंकर, काष्ठ आदि फेंक कर किसी को बुलाना। . पौषधोपवास व्रत 'धर्म का पोषण करने वाली क्रिया को पौषध कहते हैं । उक्त क्रिया में साधक २४ घण्टे के लिए ५ अाश्रवों का त्याग करता है,सभी सावध कार्यों से निवृत्त होता है और साथ में उपवास (एक दिन का व्रत) करके २४ घण्टे धर्म स्थान में रहता है। वह चार प्रकार का ' होता है-- १-पाहार पौषध, २-शरीर पौषध, ३-ब्रह्मचर्य पौषध और ४-अव्यापार पौषध । इन चारों के भी देश और सर्व ऐसे दो-दो भेद होते हैं। १ आहार-पोषध- एकासन, आयंबिल करके २४ घण्टे धर्म साधना में विताना देश-हार-पौषध है तथा एक दिन-रात के लिए आहार-पानी का सर्वथा त्याग कर देना आहार-पौषध है। । २-शरीर-पौपध- शरीर विभूषा के साधनों में कुछ का त्याग करना देश शरीर पोषध है और सभी तरह के विभूषा संबंधी साधनों . का सर्वथा त्याग करना सर्व-शरीर पोषध है। . -ब्रह्मचर्य-पौपध-सिर्फ दिन या रात के लिए मैथुन का त्याग . करना देश ब्रह्मचर्य पोषध है और एक दिन-रात के लिए मैथुन क्रिया का त्याग करना सर्व ब्रह्मचर्य पौषध है। : . .. ४.अव्यापार-पौपष- आजीविका के लिए किए जाने वाले कार्यों
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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