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________________ प्रश्नों के उत्तर .. -५३२. क्रिया को जैन परिभाषा में दया कहते हैं लोक भाषा में इसे खातापीता पौषध व्रत भी कहते हैं। दया में हिंसा, असत्य आदि सभी दोषों का एक करण एक योग से (शरीर से दोष सेवन करने का.) १ करण ३ योग से (शरीर से दोष सेवन करने, करवाने एवं अनुमोदन करने का ) तथा दो करण तीन योग से (वचन और शरीर से दोषों का सेवन करने, करवाने एवं अनुमोदन करने का). एक दिन-- रात के लिए त्याग किया जाता है। आजकल प्रायः एक करण. एक योग से दया स्वीकार करने की परम्परा है । दया स्वीकार करने .. वाले व्यक्ति को २४ घण्टे घर एवं दुकान आदि से अलग धर्मस्थान में .. रहना होता है । शयन एवं खाने-पीने तथा शौचादि आवश्यक कार्य के लिए आने-जाने के सिवाय सारा समय धर्म क्रिया एवं स्वाध्याय तथा चिन्तन-मनन में लगाना चाहिए। दया के लिए एक समय खाना चाहिए । यदि किसी से भूखा नहीं रहा जाता हो तो वह दो समय भी । खा सकता है । परन्तु खाना सादा, सात्विक, हल्का एवं अल्प होना .:. चाहिए। जिससे स्वाध्याय एवं चिन्तन-मनन करने में किसी तरह की ... बाधा न पड़े। इस के सिवाय अल्प समय के लिए आश्रव का त्याग . करके उस समय को चिन्तन में लगाना भी इसी व्रत में गिना जाता .. - है। जिसे संवर कहते हैं । सामायिक के लिए ४८ मिण्ट का समय .. निश्चित है, परन्तु संवर इससे कम या अधिक समय के लिए भी किया । ...जा सकता है। .. .. ..... .. .. . . . . . ...... इस व्रत को निर्दोष पालन करने के लिए श्रावक : को सदा ५. ... . बालों से वच कर रहना चाहिए- . .. . .. ... . . १-नियमित सीमा के बाहर की वस्तु:मंगवाना।..... .. २-नियमित सीमा के बाहर वस्तु भिजवाना:I, :...
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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