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________________ ७५ द्वितीय अध्याय 1 हैं । इस तरह के एकान्त नित्य- शाश्वत और अद्वैत ग्रात्म स्वरूप की मान्यता वढने लगी । और विचारक स्पष्ट दिखाई पडने वाले द्वैत को मिथ्या वताने लगे, तब उस का विरोध होने लगा । तथागत बुद्ध विरोधी के रूप में सामने आए। यह बात अलग है कि उन्हे अनात्मवाद के सिद्धात को फैलाने में कितनी सफलता मिली। इसका मूल्यांकन करना ऐतिहासिको का काम है । हम तो यहा इतना ही वताना चाहते है कि तथागत बुद्ध ग्रात्म विरोधी चिन्तन लेकर मैदान में उतरे और उनने वजनदार शब्दों में अद्वैतवाद एवं नित्यवाद का खण्डन किया । . तथागत बुद्ध आत्म तत्त्व को विल्कुल स्वीकार नही करते है । परन्तु उपनिषदो मे आत्मा को जिस प्रकार से एकान्त नित्य, अद्वैत और विश्व का एकमात्र मौलिक तत्त्व माना गया है, बुद्ध ने उस का वि रोध किया है और उन्होने वजनदार शब्दो मे वहा है कि आत्मा एकान्त नित्य नही है | यदि उसे एकात नित्य माना जाए तो उस मे कार्यकारित्व भाव घट नही सकेगा । 1 आगमो एव दार्शनिक ग्रन्थो मे वर्णित भूतवादियो एव चार्वाक आदि के अनात्मवाद और बुद्ध के अनात्मवादके सिद्धात मे - इतना हो साम्य है कि दोनो पक्ष आत्मा को सपूर्ण रूप से स्वतन्त्र द्रव्य और नित्य या गाश्वत नही मानते । उभय पक्ष इस बात मे भी सहमत है कि आ त्मा उत्पन्न होता है । परन्तु बुद्ध और चार्वाक की मान्यता मे भेद. यह है कि बुद्ध पुद्गल - आत्मा, जीव या चित्त नाम की एक स्वतन्त्र मनसैवानुद्रष्टव्य नेह नानास्ति किंचन । § मृत्योस मृत्युमाप्नोति य इह नानेव पश्यति ॥ っ – वृहदा ०.४, ४, १९, कठो० ४, ११ ।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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