SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नो के उत्तर ७४ के मार्ग को सहर्ष स्वीकार किया। नचीकेता जैसा सुकुमार वालक भी मृत्यु के बाद आत्मा की क्या स्थिति होती है,इसे जानने के लिए इतना व्याकुल हो उठा कि उसे धन-सपति एवं स्वर्ग का विपुल एश्वर्य भी भुलावे मे नही डाल सका । आत्म विद्या को जानने के लिए वह यमराज के सारे प्रलोभनो को ठुकरा देता है । मैत्रेयी के सामने भी- जव अपने पति की सपति का अधिकार लेने का प्रसग पाया, तो उसने उस प्रस्ताव को ठुकरा कर आत्म विद्या की शोध में अपना जीवन लगाना चाहा । उसने स्पष्ट शब्दो मे कहा कि जिस धन-वैभव से मैं अमर नही वन सकती उसे लेकर क्या करू? उसने अपने पति से कहा कि आप मुझे वह विद्या सिखाएं, जो मुझे अजर-अमर बना सके। ____ इस तरह वाह्य सुखो से हटकर आत्म तत्त्व को जानने की प्रवल जिज्ञासा विचारको मे बढने लगी। और परिणाम स्वरूप वैदिक क्रिया-काण्ड के प्रति विचारकों की अरुचि होने लगी। वे अपना ध्यान शुष्क-क्रिया काण्ड से हटा कर आत्मा के प्रत्यक्षीकरण मे लगाने लगे। परन्तु आत्मा के अमूर्त स्वरूप-को प्रत्यक्ष में न देख सकने के कारण विचारको में आत्म स्वरूप के विषय मे एक रूपता नहीं रही। जिस विचारक के चिन्तन में जो कुछ सूझा उसी का उस ने प्रतिपादन किया। इससे कुछ विचारकों के मन में आत्म तत्त्व के विरुद्ध प्रतिक्रिया होने लगी। तथागत बुद्ध के विचारो-मे-यह प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। क्योकि सभी उपनिषदों का सार यह है कि विश्व के मूल में एक शाश्वत आत्मा - ब्रह्म तत्त्व है, और कुछ नहीं । उपनिषद् के ऋपियो ने यहा तक कह दिया कि जो व्यक्ति अद्वैत तत्त्व को न मान कर द्वैत या भेद की कल्पना करते हैं, अपने सर्वनाश को निमन्त्रण देते
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy