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________________ www ७३ द्वितीय अध्याय प्राण का भी प्राण है। प्रश्नोपनिषद मे यहां तक कहा गया कि प्राण का जन्म आत्मा से ही होता हैं। इस तरह आत्मा को शरीर, प्राण, मन और इन्द्रियो से पृथक और उन सव का सचालक माना गया । और उसे पुरुष, चेतन, ब्रह्म, आनन्द आदि नामो से पहचाना गया है । - उस पुरुष या आत्मा को अजर, अक्षर, अमृत, अमर अव्यय, अज, नित्य, ध्रुव, शाश्वत और अनन्त माना है । और यह भी माना है कि वह अशब्द, अस्पर्श, अरूप, अव्यय, अरस, नित्य, अगन्धवत्, अनादि, अनन्त, महत् तत्त्व से परे, घ्र व है । ऐसे आत्मा को जानसमझ कर मनुष्य मृत्यु के मुख मे से मुक्त हो जाता है। उपनिषदों का आत्मवाद एवं तथागत बुद्ध का अनात्मवाद जब हम आत्मा के विकास क्रम पर दृष्टि डालते है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि पहले पहल विचारको की दृष्टि वाह्य पदार्थों पर अटकी रही। उसके बाद चिन्तन बढता गया और विचारको ने शरीर, प्राण, इन्द्रिय एव मन से अतिरिक्त आत्म तत्त्व को स्वीकार किया। और यह भी माना कि वह इन्द्रिय ग्राह्य नही बल्कि अंतीन्द्रिय है । इस बात को मानने के बाद उसके स्वरूप को जानने की इच्छा जागृत हुई और सभी विचारको ने आत्मा के स्वरूप को जानने एव उस की व्याख्या करने में अपनी सारी शक्ति लगा दी । और उस मे वे इतने तल्लीन हो गए कि आत्मानन्द के सामने उन्हे सारे सुख फीके लगने लगे । यहा तक कि आत्म विद्या के सामने स्वर्ग के सुख भी तुच्छ प्रतीत होने लगे। अत. आत्मा की शुद्ध ,ज्योति का दर्शन करने के लिए उन्होने ससारिक ऐश्वर्य एव सुख साधनो को त्याग कर कठोर तपश्चर्या ommmmmmmm ६ कठोपनिषद्, ३,२। M ~ ~ ~ ~ * वही, १, ३, १५। .
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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