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________________ प्रश्नो के उत्तर - वस्तु भी मानते है और भूतवादी चार या पाच भूत से अतिरिक्त श्रात्मा नाम की किसी स्वतन्त्र वस्तु को नही मानते । बुद्ध भी जीव या पुद्गल को अनेक कारण से उत्पन्न होने वाला मानते हैं और इस कारण उसे परतंत्र भी मानते हैं परन्तु उसकी उत्पति मे विज्ञान (चैतन्य) और विज्ञानेतर दोनों प्रकार के कारण मौजूद रहते हैं । जबकि भूतवादियो का कहना है कि चार या पांच भूतो के अतिरिक्त कोई भी चैतन्य कारण नही है, जिससे ग्रात्मा की उत्पत्ति होती है । बुद्ध चार या पांच भूतो की तरह विज्ञान को भी एक मूल तत्त्व मानते हैं और वह जन्य होने से अनित्य है, अशाश्वत है । और वे चैतन्य - विज्ञान की सन्तति को ग्रनादि मानते हैं । जलवार की तरह वह एक रूप से परिलक्षित होने पर भी एक दूसरे जल विन्दु की तरह भिन्न है । ऐसी विज्ञान धारा कोबुद्ध ने माना है, परन्तु भूतवादियो को किसी भी तरह की भूतेतर चैतन्य शक्ति मान्य नही है और न वे विज्ञानवारा को ही मानते हैं । ७६ तथागत बुद्ध ने रूप, वेदना, सजा, सस्कार, विज्ञान, इन्द्रियो, इन्द्रियो के विषय और उन से होने वाले ज्ञान, मन, मानसिक धर्म और मनोविज्ञान इन सभी विषयो पर सोचा- विचारा है और अन्त मे सभी को अनित्य, दुख और अनात्म रूप से बताया हैं । वे अपने मे पूछते हैं कि उक्त विषय नित्य है? तो उत्तर मिलता कि नही अर्थात् - दुनिया मे कोई भी वस्तु नित्य नहीं है । तब फिर पूछते कि अनित्यं वस्तु सुख रूप होती है या दुख रूप ? उत्तर मे कहते हैं - दुख रूप । तब फिर प्रश्न होता क्या दुःख रूप तत्त्वं आत्मा हो सकते हैं ? उत्तर निषेव की भाषा में होता अर्थात् ये सारे विषय ग्रनात्मा है । ससार में शाश्वत सुख रूप आत्मा जैसी कोई चीज ही नही है, यह वात वे
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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