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________________ - प्रश्नों के उत्तर ६५ anmmmmmmmmar रवादी कहा है। वौद्धो के दीघनिकाय और जनो के रायपसणीय मूत्र मे नास्तिक राजा प्रदेशी का विस्तृत वर्णन मिलता है कि वह अात्मा को देह से भिन्न नही मानता था। उस ने आत्मा को खोजने के लिए अनेक प्रयत्न किए फिर भी वह उस में असफल रहा। इस का कारण स्पष्ट है कि वह आत्मा को देह या भौतिक तत्त्व मान कर ही अन्वेपण करता रहा, उस को साकार रूप में पाने का प्रयत्न करता रहा । यदि वह आत्मा को चेतन, अमूर्त एव शरीर से पृथक मान कर उस का अन्वेषण करता, तो उस के अन्वेषण की प्रक्रिया और ही होती। फिर वह उसे देह मे नही शोधता, बल्कि अपने अदर झाक कर देखता, चिंतन की गहराई मे पहुचने का प्रयत्न करता । जैसा कि केगो घमण के प्रतिवोध के बाद उसने प्रयत्न किया था और वह उस मे सफल भी रहा। इस तरह कुछ विचारक देह को ही प्रात्मा मानते थे। उन को स्थूल दष्टि शरीर के आगे नहीं देख सकी और न उनका चिन्तन ही आत्मस्वरूप तक पहुच सका। प्राणात्मवादी कुछ विचारको ने देह को ही आत्मा माना । परन्तु, कई चिंतको को इतने मात्र से सतोष नही हुआ। वे जरा चिन्तन की गहराई में उतरे, तो उन का ध्यान-सवसे पहले प्राण की तरफ गया । निद्रा के समय गरीर और इन्द्रिए सो जाती है, तव-भी प्राण जागृत रहता है अर्थात् श्वोसोच्छवास निरन्तर चलता रहता है, उसका कार्य-उस समय भी बन्द नही होता । अत. उनकी दृष्टि प्राण तक पहुची और उन्होने प्राण को आत्मा स्वीकार किया। शरीर का बहुत कुछ कार्य इन्द्रियो पर आधारित है । इसलिए
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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