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________________ 'प्रश्नो के उत्तर जानेगा, स्याद्वादी छद्मस्थ उसे परोक्ष-श्रुत ज्ञान से देखेगा। केवलजान पूर्ण है, वह साक्षात् आत्मा से होता है, उसमे किसी तरह का प्रावरण नहीं होता, परन्तु इसका पूर्ण होने का यह अर्थ नहीं है कि वह एकान्तवादी होता है। केवली भी वस्तु के स्वरूप को सापेक्ष दृष्टि से ही जानेगा। क्योकि वस्तु सापेक्ष है, अनेक धर्म युक्त है और केवली उस वस्तु के द्रव्य एव पर्याय सभी रूपो का प्रत्यक्षत अवलोकन करते है। वे वस्तु मे रहे हुये सामान्य और विशेष उभय.धर्मो को देखते है, अत केवल ज्ञान को.अनेकान्त से भिन्न एकान्त मानना युक्ति सगत नही कहा जा सकता। दूसरे मे केवलज्ञान भी उत्पाद्, व्यय और प्रौव्य युक्त है। वह भी परिणामी नित्य है। उसकी पर्यायो मे परिवर्तन होता रहता है। जैसे काल अन्य पदार्थों पर वर्तता है, वैसे वह केवलज्ञान पर भी वर्तता है। जैन केवलज्ञान को कूटस्थ नित्य नही, परिणामी नित्य मानते है.। काल की अपेक्षा से प्रत्येक वस्तु की तीन -- अतीत, वर्तमान और अनागत अवस्थाये है । केवलज्ञान वस्तु की तीनो काल की अवस्थाओ को जानता-देखता है । परन्तु वह इन तीनो अवस्थाओ को जिस.रूप में आज देखता है, कल उन्ही तीनो अवस्थाओ को भिन्न रूप से जानेगादेखेगा। क्योकि आज का जो वर्तमान है.वह कल.का अतीत बन जायगा और कल का जो अनागत था वह वर्तमान हो जाएगा। इस तरह वस्तु की पर्यायों को आज उसने वर्तमान रूप से जाना था, कल उन्हे ही अतीत रूप से जानेगा और जिन्हे आज भविष्य रूप से देखता है उन्हे कल वर्तमान रूप से देखेगा। इस तरह काल, भेद से केवलजान मे भी अतर होता है और इस अतर के साथ-साथ अथवा वस्तु की अवस्थामो के परिवर्तन के साथ-साथ ज्ञान की अवस्था-पर्यायो मे परिवर्तन होता
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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