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प्रश्नो के उत्तर प्रस्तुत पद मे लोकायत या चार्वाक दर्शन को पेट के तुल्य माना है। शरीर मे विचार शक्ति के स्रोत मस्तिष्क प्रादि अमो मे पेट का महत्त्वपूर्ण स्थान है, खुराक से प्राप्त शक्ति को पेट से लेकर सव अग अपना-अपना काम करते हैं । इसी तरह आध्यात्मिक जीवन में भौतिक साधनो का भी अपना स्थान है। शरीर, मकान, वस्त्र, खाद्यपदार्थ एव सयम साधना के अन्य भौतिक साधनो (उपकरण श्रादि} के सहयोग के विना साधक अपने साध्य को सिद्ध नही कर सकता ! अतः जैन दर्शन भौतिक पदार्थों को सर्वथा उपेक्षा नहीं करता। परन्तु वे पुष्पमाला मे पुष्पों के नीचे दवे हुए धागे की तरह आध्यात्मिकता को ज्याति से दवे रहते हैं। यह सत्य है कि पुष्पमाला को बनाने के लिए धागा अावश्यक है। धागे में अनुस्यूत सभी पुष्प शोभायमान होते है । परन्तु, यह शोभा तभी तक स्थित रहती है, जब तक धागा फूलो से ढका रहे। यदि फूलो को छिन्न-भिन्न करके धागा फार उभर आए तो वह पुष्पमाला भट्टी-सी परिलक्षित होगी, कोई भी व्यक्ति उसे लेना स्वीकार नहीं करेगा। यही स्थिति आध्यात्मिक एव भौतिकवाद की है । यदि आध्यात्मिक पुष्पो को पराग के नीचे भौतिकता का धागा दवा रहे तो इसमे जैन दर्शन को कोई आपत्ति नही। साधना काल मे साधक भौतिकता से सर्वथा निवृत्त नही हो सकता। इस लिए उसके अस्तित्व से सर्वथा इन्कार नही किया जा सकता। परन्तु, यदि आध्यात्मिकता के पुष्पो को नष्ट-भ्रष्ट करके भौतिकता अपना
तत्त्व विचार सुधारस धारा, गुरुगम चिण केम पीजे ॥ पड् दर्शन जिन अग भणीजे न्यास पडग जो साधे रे। नमि जिणद का चरण उपासक पड् दर्शन जो अराधे रे ।
, -पानन्दधन चौबीसी ।