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________________ ३४५ अष्टम अध्याय सवे तीर्थकर भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध दोनों समकालीन थे। दोनो राजकुमार थे,विवाहित थे। सोने के सिहासनो को लात मार दोनो ने प्रव्रज्या ग्रहण की थी, साधनाकाल मे दोनों के जीवन मे अनेको वाधाए उपस्थित हुईं। ब्राह्मण संस्कृति से दोनो की टक्कर थी, दोनों ही श्रमण सस्कृति के स्तभ थे । वैदिकी हिसा हिसा न भवति, की असंगत और हिसक धारणा का दोनो ने डट कर विरोध किया था। इस प्रकार अन्य भी अनेको बाते हैं, जिनके कारण जैनधर्म और बौद्धधर्म मे समानता पाई जाती है। प्रश्न- जैनधर्म और बौद्धधर्म में कोई भिन्नता है ? यदि है तो वह क्या है ? . उत्तर- दोनो धर्मो मे अनेको जगह मतभेद मिलता है। दोनो के धामिक ग्रन्थ जुदे-जुदे, हैं, इतिहास जुदा है. कथाए, जुदो हैं,इतना ही नही, धार्मिक सिद्धात भी दोनोके नितान्त भिन्न हैं ।जैनधर्म नित्य और अभीतिक जीव तत्त्व का अस्तित्व मानता है, तथा उस का विश्वास है कि जब तक यह जीव कर्मों से वधा हुआ है, तब तक ससार मे भ्रमण करता रहता है । जव अहिंसा, सयम और तप की- त्रिवेणी मे डुबकिया लगा कर अनादिकालीन अपने कर्म-मल को सदा के लिए घो. डालता है, निष्कर्म हो जाता है, तव मुक्त होने पर सिद्धशिला मे जा विराजता है, और अनन्तकाल तक यात्मिक गुणों मे मग्न रहता हुआ शाश्वत आत्मिक सुखो को भोगता है, किन्तु बौद्धधर्म जीव तत्त्व को नही मानता है। उसके, मत मे जिसे जीव कहा जाता है, वह कोई नित्य पदार्थ नही है प्रत्युत क्षणिक धर्मोकी एक सन्तान है,जैसे तेल और बत्तीके जल चुकने पर दीपक का विनाश हो जाता है, वैसे ही उस सन्तान का भो
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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