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________________ प्रश्नो के उत्तर ३४४ आदि को अव्याकृत कहते हैं, तो इसका अर्थ यह है- उन्हे प्रात्मा के स्वरूप के सवध में कोई निश्चय नहीं है। इस लिए वे अन्य दार्शनिको की कटु आलोचनाओ से बचने के लिये उन्हे अव्याकृत कहकर अपना पीछा छुडाते हैं। परन्तु, जन विचारको ने मात्मा, परमात्मा, मोक्ष प्रादि के यथार्थ स्वरूप को बनाया है । इस तरह जैन दर्शन एव बौद्ध दर्शन में मौलिक अतर यह है कि बौद्ध दर्शन प्रात्मा को रूप, वेदना आदि पाच स्कन्वो से अतिरिक्त नही मानता और जैन दर्शन उसे इन से अलग स्वतन्त्र द्रव्य मानता है। वौद्ध दर्शन प्रात्मा को क्षणिक मानता है और जैन दर्शन एकात रूप से क्षणिक नही मानता। बौद्ध दर्शन मुक्त अवस्था में आत्मा को प्रभावशून्य अवस्था मानता है और जैन दर्शन मुक्त अवस्था मे भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है और उसे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अव्यावाघ सुख एव अनन्त शक्ति से सपन्न मानता है। प्रश्न- जैनधर्म और बौद्ध धर्म दोनों में कोई समानता है या नहीं? उत्तर- जैनधर्म और बौद्धधर्म मे अनेकों समानताएं पाई जाती हैं। दोनो वेदो को प्रमाण नही मानते । हिंसामय यज्ञो के दोनो विरोधी हैं। जगत का नियन्ता ईश्वर है, यह दोनो का विश्वास नहीं है । दोनो पुरुष मे ही, उसका आध्यात्मिक विकास होने पर देवत्व की कल्पना करते हैं। दोनो अहिंसा के अनुयायी हैं। दोनो के सघ मे साधु और साध्वी को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । इन बातो के अलावा जैनधर्म के चौबी $ इस सम्बन्ध मे हम 'आत्म विचारणा', 'कर्म विचारणा' आदि प्रकरणों में विस्तार से लिख चुके है।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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