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________________ २२१ चतुर्थ अध्याय ammmmmmmmmmmmmm व सरस्वती नदी तक आने के बहुत पूर्व जैन तीर्थकरो की शिक्षा यहां फैली हुई थी।" प्रसिद्ध प्रोफैसर सर डॉक्टर राधाकृष्णन् ने लिखा है, " जैन पुराणो मे ऋपभदेव को धर्म का सस्थापक कहा है। इस बात के प्रमाण मिले है कि सन् इस्वी से १०० वर्ष पूर्व लोग ऋपभदेव की पूजा किया करते थे, जो पहले जैन तीर्थकर है । इस मे कोई सन्देह नहीं है कि जैनधर्म श्री वर्धमान और पार्वनाथ से भी पहले फैला हुआ था। यजुर्वेद मे ऋषभदेव, अजित व अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थकरो के नाम प्रसिद्ध हैं। 'भागवत पुराण' भी कहता है कि श्री ऋषभ ने जैनधर्म को स्थापित किया था।" स्वतत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल राजगोपालाचार्य ने, भी! अपने एक प्रवचन मे कहा है, "जैनधर्म प्राचीन है और उस का विश्वास अहिंसा मे है।" उक्त सव विद्वान अजैन है और प्रायः सव पक्के वेदानुयायी है, तथापि इन्होने अपने सच्चे एव निष्पक्ष हृदय से जैन धर्म का अस्तित्व प्राचीन और वेदो से पूर्व का स्वीकार किया है। उक्त विद्वानो के उद्गारो से स्पष्टतया सिद्ध हो जाता है कि जैन धर्म सर्वथा स्वतन्त्र धर्म हैं, वेदो से भी बहुत प्राचीन है और भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रवर्तित धर्म है। इस के अतिरिक्त योगवशिष्ट मे जिन का, महाभारत शान्तिपर्व अध्याय २३२ मे जैनधर्म के स्याद्वाद का, अग्नि-पुराण अध्याय १६ मे अर्हत् का, शिवपुराण मे श्वेताम्बर जैन साधुओ के वेष का वर्णन भी ___ * The Short Studies in Science Co-operative Religion. † Indian Philosophy (Dr. Radhakrishanan).
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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