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________________ -~~~२२२ प्रश्नों के उत्तर wammmmmm उपलब्ध होता है । इन सव वर्णनो से मालूम होता है कि योगवशिष्ठ, महाभारत तथा पुराण काल से पहले जैनधर्म प्रचलित था। जैन इतिहास के अनुसार भरत चक्रवर्ती जैन थे । राम, लक्ष्मण, भगवती सीता जैन थे। कृष्ण, बलभद्र, सत्यभामा, रुक्मणी आदि सब जैन धर्म के अनुयायी थे। इसी तरह महावली पाण्डव और सती द्रौपदी भी जैन धर्म के महापथ के पथिक थे। किन-किन के नाम लिखे जाए, भारत की बडी-वडी विभूतिया जैनधर्म को मानती थी। इस से यह स्पष्ट है कि जैनधर्म भारत का व्यापक धर्म था। प्रश्न- कई विचारक कहते हैं कि जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा है, क्या यह सत्य है? उत्तर- इतिहासवेत्ता जनधर्म के प्रादिकाल को खोजने मे प्रयत्नशील है। कुछ विचारक जैनधर्म के मूल ग्रन्थो को देखे विना ही इधर-उधर के ग्रन्थो मे जैनधर्म के सवव मे लिखी हुई वातो के आधार पर कल्पना करने लगते हैं। महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर समकालिक थे और दोनो ने याज्ञिक हिंसा, जातिवाद एवं वर्गभेद का विरोध किया था। इस से कई विचारको को यह भ्रम हो गया कि महात्मा वुद्ध के बाद जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। परन्तु, जब पाश्चात्य एव भारतीय विद्वानो ने जैन ग्रन्थो एव आगमो का अनुशीलन-परिशीलन शुरु किया और उन पर गहराई से चिन्तन-मनन करने लगे तो उन्हे यह स्पष्ट हो गया कि जैन धर्म बौद्ध या वैदिक धर्म की शाखा नही है, वह एक स्वतन्त्र एव मौलिक धर्म है और वैदिक काल से पहले भी उसका अस्तित्व रहा है। बहुत से विचारको ने भगवान ऋषभदेव ६ इस पर पीछ के पृष्ठो पर विस्तार से वर्णन कर चुके है ।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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