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________________ २१९... चतुर्थ अध्याय अन्य विद्वानो ने ईसा पूर्व चौथी सदी की प्राचीन रचना माना है, मे स्याहाद और आत्मा सवन्धी जैनधर्म की मान्यता का खण्डन किया गया है । इस के अतिरिक्त महाभारत, मनुस्मृति, शिवसहस्र , तत्तरीय आरण्यक, यजुर्वेद सहिता और अन्य हिन्दू शास्त्रो मे जैन धर्म सम्बन्धी हमे अनेक उल्लेख प्राप्त होते है। डा० शाटियर कहता है कि तथ्यो के सामन्य विचार की दृष्टि से यह वक्तव्य विश्वस्त माना जा सकता है कि शास्त्र का प्रमुख भाग महावीर और उनके निकटस्थ अनुयायियो ने तैयार किया था, अत. इसके अतिरिक्त एक दूसरी परपरा भी है, वह यह है कि पूर्वो की रचना स्वय महावीर ने की थी और अगो की रचना उनके गणधरो ने की थी। इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर और उनके उत्तराधिकारी गणधर आगम साहित्य के कर्ता हैं । जव यह कहा जाता है कि महावीर पागम के कर्ता थे, तो उसका यह अर्थ नहीं है कि ये शास्त्र उन के ही लिखे हुए हैं । किन्तु, उस का तात्पर्य यह है कि जो कुछ लिखा गया है,उस का उपदेश उन्हो ने दिया था। क्योकि भारतवर्ष मे कर्तृत्व मुख्यरूप से वस्तु पर से ही माना जाता है। जब तक कि भाव वही हो तो शब्द किस के है, यह बात अप्रासगिक मानी जाती है। फिर जैन-साहित्य की कुछ विशिष्टताओ के कारण हम देख | Sacred Book of the East, Vol 8, P.32 ate अमेरिकन ओरियटल सोसायटी पत्रिका, सख्या ३१ पृ० २९; डाः याकोवी का लेख। * Sacred Book of the East, Vol. 22, Introduction P.45 NA
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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