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प्रश्नो के उत्तर
२१८ वेदो एव पुराणो मे यत्र-तत्र जैनधर्म की प्राचीनता के सम्बन्ध मे अनेको उदाहरण मिलते है । और भी प्रमाण दिए जा सकते है, परन्तु विस्तार भय से अधिक उदाहरण न दे कर, अब हम कुछ आधुनिक विद्वानो के विचारो का अवलोकन करेगे कि उन्होने जैनधर्म के सम्बन्ध मे क्या कहा है ।
डा० शाटियर ने लिखा है कि "मथुरा के जैन शिला लेखो की परीक्षा करने पर हम देखते हैं कि इन मे गृहस्थ भक्तो द्वारा ऋषभदेव को अर्घ्य अपित किए जाने का उल्लेख है । इस के अतिरिक्त बहुत से शिलालेखो मे केवल एक अर्हन्त को ही नहीं, अपितु अर्हन्तो का उल्लेख है। भले ही उन शिलालेखो मे राजामो के नाम न खुदे हो, फिर भी सब इण्डो-सिदियन काल के हैं ऐसा स्पष्ट प्रकट होता है । और यदि कनिष्क एव उनके वशजो का काल शक युग ही माना जाता हो, तो ये लेख पहली और दूसरी सदी के मालूम होते हैं। इस से स्पष्ट होता है कि जैनधर्म के सस्थापक महावीर नही थे। यह उन से भी पहले था, इसमे अनेक तीर्थकर हो चुके हैं।
डा० याकोबी लिखता है कि यदि हम तीर्थकरो की बात को छोड भी-दे, तब भी हिन्दू धर्म के प्राचीनतम ग्रन्थो मे हमे जैन तत्त्वज्ञान के सम्बन्ध मे उल्लेख मिलता है। ब्रह्मसूत्र जिसे तेलाग और * प्रीयताम्भगवानृषभश्री., अर्थात्-भगवान ऋषभ देव प्रसन्न हो ।
-एपी०, इण्डि०, पुस्तक १, पृ० ३८६ । | नमो अरहत्ततानं, अथवा अहंन्तो को नमस्कार हो ।
--वही, पृ० ३८३ । ६ वही, पृ० ३७१।