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________________ २१७ चतुर्थ अध्याय से उस समय भी जैनधर्म के होने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है । इतिहासकार राम के युग को ११ लाख वर्ष पूर्व मानते है । इस से जैनधर्म ११ लाख वर्ष से भी पूर्व था, यह स्वत सिद्ध हो जाता है । यजुर्वेद मे भगवान नेमिनाथ का वर्णन मिलता है । एक मत्र मे लिखा है कि "भाव यज्ञ को प्रकट करने वाले, ससार के सब जीवो को सव प्रकार से यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से सव जीवो की आत्मा वलवान होती है, उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आहुति समर्पित है । 11 6 प्रभास पुराण में भी लिखा है, “पवित्र स्वताचल ( गिरनार ) पर्वत पर नेमिनाथ जिनेश्वर हुए, जो कि ऋषियो के आश्रयभूत और मोक्ष के कारण थे । § जैन भी यही मानते हैं कि भगवान नेमिनाथ का निर्वाण गिरनार ( रैवताचल) पर्वत पर हुआ था । नागपुराण मे भगवान ऋषभदेव का जैनागमो मे प्रयुक्त आदि - नाथ नाम भी मिलता है और उनके नाम स्मरण की महिमा का भी उल्लेख किया गया है । उक्त प्रसग मे लिखा है कि "जो फल ६८ तीर्थो की यात्रा करने से होता है, वह फल ग्रादिनाथ भगवान का नाम स्मरण करने से होता है । "S १ * वाजस्यनु प्रसव ग्रावभूवेमा च विश्व भुवनानि सर्वतः । स नेमिराजा परियाति विद्वान् प्रजा पुष्टि वर्द्धयमानो ग्रस्मै स्वाहा - यजुर्वेद ९,२५ ९ रेवताद्री जिनो ने मियुगादिर्विमलाचले | ऋषीणामाश्रयादेव मुक्ति मार्गस्य कारणम् । $ अष्ट पप्टिषु तीर्थेषु, यात्राया यत्फल भवेत् 1 आदिनाथस्य देवस्य स्मरणेनापि तद् भवेत् ॥ - प्रभास पुराण । -नाग पुराण
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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