SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नों में जार यह सत्य है कि किम बन्नु का निर्माण होता है जमना ना भी होता है। परन्तु मोक्ष नाना मना गला गोमा कभी निर्माण नही द्रमा, न कभी हाना है और न मोहा। मांस कोई प्रात्मा को नई ग्राम्या नहीं. जिममा अभिनय निर्माणको अात्मा अनादि काल में कर्मों में प्रावृत्त होने के कारण ममार भ्रमण करती है, मनेर अनुमान एवं प्रनितम वेदनामी का मोदन करती है । उम कर्म प्रावरण को हटा देने का नाम मुक्ति पा गांक्षा है। अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने का नाम ही मोक्ष है और वह पाप अनादि काल मे चला पा रहा है। मगार अवस्या में प्रान्मा का जो म्वरुप था, उसमें चोर मोक्ष प्रवधा के स्वरूप में कोई पता नहीं रहता है। संसार अवरया में यह कमों से प्रावती और मुस्न अवस्था में प्रावरण रहित हो जाती है। मुक्ति में वहाँ आत्म स्वम्प रहता है, उसका अभिनव निर्माण नहीं होता है। प्रत. उसकी शोच्चता में कोई दोष पाने का प्रश्न ही नहीं उठना। वन्तुत. मनार परिभ्रमण का मूल कारण है... राग - हंप या कपाय जिलये कम 'चम होता है और मुक्त अवस्या में राग-द्वेष या कषाय का अभाव है, अतः मोक्ष मे स्थित प्रात्मा सनार में फिर में जन्म नहीं लेती । वृक्ष तभी तक अकुरित, पुप्पित एव फलित होता है जब तक उसका बीज मुरक्षित रहता है। बीज के जल जाने पर उस दग्ध बीज में अकुर पैदा नहीं हो सकता। इसी तरह जिस प्रात्मा ने राग-द्वेष रूप संसार मे परिभ्रमण कराने वाले बीजो का नाश कर दिया है. वे आत्माएं कभी भी जन्म ग्रहण नहीं करती हैं। जनों की यह मान्यता है कि कर्म और आत्मा का सवध अनादि काल मे है और अनादि संबंध सदा स्थायी होता है। फिर यह कैसे
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy