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________________ २०७ - तृतीय श्रव्याय हो, उसका वाचन करना भी स्वाध्याय कहलाता है । इसमें भी चित्त वृत्ति को एकाग्र करना पडता है । S <y ६ कायोत्सर्ग - इस शब्द का शाब्दिक अर्थ है- शरीर का त्याग कर देना । परन्तु, इसका यह तात्पर्य, नही है कि मर जाना । शरीरत्याग का मतलब है-उस पर से ममत्व - आसक्ति हटा लेना । इम तरह बाह्य और आभ्यन्तर तप के १२ भेद होते हैं । तप . " निर्जरा का कारण है, अत. निर्जरा के भी उक्त १२ भेद माने गए है । मोक्ष तत्त्व ܡ पु वन्ध एव बन्ध के कारणों का सर्वथा प्रभाव एव वघे कर्मो V हुए का ग्रात्यन्तिक क्षय होने का नाम मोक्ष है । जब आत्मा सवर के द्वारा - कर्मो का आगमन - रोक देती है श्रौर निर्जरा के द्वारा पूर्व सचित कर्मो का सर्वथा क्षय कर देती है, तब वह कर्म जन्य सूक्ष्म एव स्थूल दोनो तरह के शरीरो से रहित होकर ऊर्ध्वं गमन करती है और लोक के प्रत भाग मे जाकर सदा के लिए स्थित हो जाती है । यह हम पहले जीव तत्त्व के विवेचन मे बता चुके हैं कि प्रलोक मे जीव या पुद्गल कोई पदार्थ गति नही कर सकता है । क्योकि वहा धर्मास्तिकाय का अभाव है. और उसके प्रभाव मे जीव या पुद्गल गति नही कर सकता है । इस लिए सिद्ध लोक के प्रत मे स्थित रहते हैं, अलोक मे नही जा सकते हैं । मोक्ष शाश्वत है 1 6 " कुछ विचारक यह तर्क देते हैं कि मोक्ष शाश्वत नही है । क्योकि कर्मों के सर्वथा नष्ट होने पर उसका निर्माण होता है और जिस वस्तु का निर्माण होता है, उसका एक दिन विनाश भी अवश्य होता है । प्रत I' मुक्त अवस्था भी सदा नहीं रह सकती' । f- t पर · , 1 * 14
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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