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तृतीय अध्याय
इस मान्यता में किसी का विरोध नही है। इस मे भी कपाय को कर्म वन्ध का प्रवल कारण माना है। क्योकि कषाय रहित योग के कारण केवल कर्म आते है, परन्तु कषायाभाव के कारण उनका वन्ध नही होता है। इसलिए आगमो मे राग-द्वेप को कर्म का वीज कहा है। अत कर्म बन्ध का प्रमुख कारण कषाय है। परन्तु उसे अभिव्यक्त करने का साधन योग हैं। मन, वचन और काया इन तीनो योगो मे से किसी एक योग की सहायता के विना कषाय की अभिव्यक्ति नही हो सकती है । अत यह जानना आवश्यक है कि इन तीनो आधारो मे से मुख्य आधार कौनसा है? ब्रह्म विन्दु उपनिपद्, २ मे कहा गया है___ "मन एव मनुष्याणां कारणं वन्धमोक्षयोः, . वन्धाय विषयासक्तं मुक्त्य निर्विपयं स्मतम ।".
इसमे मन को कर्म बधन का प्रवल कारण माना है । इसी के सहयोग से मन,वचन और काया की प्रवृत्ति मे शुद्धता एव मलीनता आती है । गीता मे भी कहा गया है-हे कृष्ण यह मन वडा चचल है, इसका निरोध करना सरल नही है । परन्तु यह निश्चित है कि इस का निरोध, होने पर ही मुक्ति होती है । जैनागमो मे भी मन को प्रमुख माना है। कर्म वन्ध के लिए वचन और शरीर की क्रिया के स्थान मे जीव के परिणामो-आन्तरिक भावो या मानसिक चिन्तन को कर्म वध का प्रमुख कारण माना है। .
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-उत्तराभ्ययन,३२,६ * चचल हि मन. कृष्ण । -श्री भगवद् गीता, ६,३४ ६ परिणाम वन्च ।