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प्रश्नो के उत्तर
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कोटि मे आता है ।
अचाक्षुप पुद्गल स्कन्ध भेद चौर सघात से चाक्षुष वनते है । जब कोई स्कन्ध सूक्ष्मत्व से निवृत्त होकर स्थूलत्व को प्राप्त होता है, तव उसमे कुछ नए परमाणु अवश्य मिलते हैं और कुछ पुरातन परमाणु अलग भी होते है । मिलना और अलग होना यही भेद और सघात है । पुद्गल का इतना लम्बा वर्णन करने पर भी यह समझ मे नही आया कि उनका काम क्या हैं?
पुद्गल अनन्त हैं और उनके स्थूल स्थूल, स्थूल, स्थूल सूक्ष्म आदि प्रकार से अनन्त स्कन्ध-वनते - विगडते रहते है । इस दृष्टि से पुद्गलो के ग्रनन्त कार्य होते हैं । फिर भी कुछ विशिष्ट कार्य है, जिन पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे। वे कार्य है- शब्द, वध, सौक्ष्म्य, स्थोत्य, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत । $ ये पुद्गल के असाधारण गुण है अर्थात् पुद्गल के अतिरिक्त अन्य द्रव्यो मे नही मिलते हैं ।
शब्द
वैशेषिक दर्शन शब्द को आकाश का गुण मानता है । साख्य दर्शन शब्द तन्मात्रा से आकाश की उत्पत्ति मानता है । परन्तु दोनो मान्यताए गलत है। हम पहले बता आए है कि शब्द पुद्गल है | क्योकि शब्द का उद्भव दो पुद्गल स्कन्धो मे परस्पर सघर्ष होने से होता हैं । ग्रत वह पुद्गल से उत्पन्न होता है और अपने मार्ग मे पड़ने वाले पुद्गलो को तरगित करता है, कपित करता है तथा पुद्गलो द्वारा
$ शब्दवन्वमोक्ष्म्यस्थौल्यसस्थानभेदतमश्छायाऽऽतपोद्योतवन्तश्च
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—-तत्त्वार्थ सूत्र, ५, २४