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________________ प्रश्नों के उत्तर ११८ - मे स्थित होने वाले पदार्थों का कैसे सहायक हो सकता है। वह चलने एव ठहरने के लिए स्थान (अवकाश) दे देता है, परन्तु स्थित होने मे सहायक नहीं होता। स्थित होने वाले जीव या पुद्गल किसी भी द्रव्य को स्थान दे देता पीर बात है और उसके ठहरने में सहायक बनना और बात है । स्थान देना और ठहरना एक नही,दो क्रियाए हैं। स्थान अर्थात् अवकाग देने का स्वभाव आकाग का है, तो ठहरते हुए को ठहरने में सहयोग देने का स्वभाव अवर्म द्रव्य का है। अत अधर्म द्रव्य ही जीव और पुद्गल के स्थित होने मे साधारण कारण है । जिस प्रकार मछली को गति करने के लिए पानी और थके हुए पथिक को विश्राम लेने के लिए वृक्ष की छाया सहयोगी होती है, उसी तरह धर्म और अधर्म द्रव्य जीव और पुद्गलो की गति एव स्थिति में सहायक होते हैं। प्रो० घासीराम जैन ने अपनी "कासमोलाजी प्रोल्ड ऐण्ड न्यू" पुस्तक मे धर्म द्रव्य की तुलना आधुनिक विज्ञान के इथर नामक तत्त्व से की है और अधर्म द्रव्य की तुलना 'सर आइजक न्यूटन' के आकर्षण सिद्धान्त से की है। वैज्ञानिको ने भी इथर तत्त्व को अमूर्त, व्यापक और निष्क्रिय मानने के साथ गति का आवश्यक माध्यम भी माना है। यह जैनो के धर्म द्रव्य के समान ही है । अवर्म द्रव्य और विज्ञान के आकर्षण सिद्धांत को तुलना करते हुए प्रो० जैन ने लिखा है-"यह जैनधर्म के अधर्म विषयक मान्यता की सब से बड़ी विजय है कि विश्व की स्थिरता के लिए विज्ञान ने अदृश्य आकर्षण शक्ति की सत्ता को स्वय सिद्ध प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है और प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइस्टीन ने उस मे सुधार करके उसे क्रियात्मक रूप दिया है। अब आकर्षण सिद्धांत को सहायक रूप में माना जाता है, मूलकर्ता के रूप
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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