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________________ ११७... द्वितीय अध्याय अलोक मे नहीं है। इस कारण जीव एवं पुद्गल गतिशील स्वभाव वाले होने पर भी अलोक मे नही जा सकते है। इस द्रव्य को जैनागमो मे धर्म द्रव्य माना गया है। - जीव और पुद्गल गति भी करते हैं और स्थित भी होते है। जैसे गति करने मे धर्म द्रव्य साधारण कारण है, उसी प्रकार स्थित होने वाले जीव और पुद्गलो के स्थित होने मे अधर्म द्रव्य साधारण कारण है। वह भी धर्म द्रव्य की तरह लोक व्यापी, निष्क्रिय, अखण्ड एव अमूर्त द्रव्य है। इस के अस्तित्व का परिज्ञान लोक- के अन्तिम प्रदेश तक ही होता है। क्योकि अलोक आकाश मे धर्म द्रव्य का अभाव होने के कारण जीव और पुद्गलो की गति नही होती। अत. जड़-चेतन सभी पदार्थो को लोक मे ठहरने के लिए इसके सहयोग की अपेक्षा रहती है। ये दोनो द्रव्य स्वयं गतिशील नहीं है, किन्तु चलने और ठहरने वाले जीव और पुद्गलो की गति एव स्थिति मे साधारण निमित होते हैं। दोनो द्रव्य लोक व्यापी; निष्क्रिय, अखण्ड और अमूर्त हैं तथा दोनो उत्पाद-व्यय रूप से परिणमन करते हुए भी नित्य है । लोकालोक का विभाग इन्हीं दो द्रव्यो के आधार पर आधारित है। यह एक तर्क है कि आकाश अवकाश देता है, तो उसे स्थिति का कारण क्यो न माना जाए? स्थित होने मे अधर्म द्रव्य को साधारण कारण मानने की क्या आवश्यकता है? यदि आकाश को स्थित होने का कारण मानते हैं, तो आकाश तो आलोक मे भी विद्यमान है। क्योकि वह अखण्ड द्रव्य है और अनन्त प्रदेशी है। लोकाकाश तो असंख्यात प्रदेशी है, उसका अनन्त भाग तो आलोक मे ही है और वहा वह किसी भी पदार्थ के ठहरने मे सहायक नही बनता, तब वह लोक नो उत्पाद-व्ययपाल, निष्क्रिय, अखण्डारण निमित होते
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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