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________________ १०९ द्वितीय अध्याय सव तरल पदार्थों को सजीव एव चेतन माना है । अस्तु तरल होने मात्र से पानी को निर्जीव नहीं, सजीव मानना चाहिए। पृथ्वी एव वनस्पति की तरह पानी भी बढ़ता है। ग्राप समझते होगे कि वर्षा से पानी वढता है । नही, वर्षा से तो पानी कम होता है । कारण यह होता है कि वर्षा के पहले सूयं समुद्र तथा सरिताओ मे से पानी को सोखता है । वह वाप्प बना कर ग्राकाश मे पहुचाता है और ठड़ी हवा का सहयोग पाकर वान फिर से पानी के रूप में परिवर्तित हो जाता है ओर वादल वन कर आकाश में इधर-उधर मडराता रहता है और किसी पदार्थ मे टकरा कर वरस पड़ता है। तो वर्षा का जल बाहर से नही पृथ्वी पर स्थित जल स्रोत मे से ही श्राता है। वाष्प रूप मे ऊपर उठते समय कुछ पानी हवा मे मिल जाता है, कुछ सूख जाता है, इस तरह पानी कम होता है, वढता नही । हा, तो एक तो पानी वादलो के रूप मे जाकर कम होता है और दूसरे मे प्रति दिन असख्य जल राशि मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधो आदि के काम मे आती है ! इस तरह हमेशा जल का इतना इस्तेमाल होने पर भी वह घटता नही, प्रत्युत वढ़ता ही जाता है। इस से स्पष्ट है कि समुद्र, सरिता आदि मे स्थित जल में अभिवृद्धि होती है । यह बात अलग है कि हम पत्थर एव पेड़पौधो की तरह उसे प्रत्यक्ष में बढ़ते हुए नही देखते । इस तरह उस में होने वाली श्रभिवृद्धि से यह प्रमाणित होता है कि पानी सजीव है । और उसकी चेतनता संव प्रमाणो से सिद्ध है । yo B अव देखना यह है कि पृथ्वी, अग्नि और वायु मे भी जीव-चेतनता है या नही ? कुछ लोगो का कहना है कि पत्थर ठोस एव गक्त होता है, अत उसमें आत्मा कैसे प्रवेश कर सकती है ? ग्रापं सदा देखते हैं कि शरीर में स्थित हड्डी शक्त एव सघन होती है । फिर भी उस के
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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