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________________ प्रश्नो के उत्तर १०८ मे इर्षा, क्रोध, प्रसन्नता, नाराजगी ग्रादि विकारी भाव हैं । कुछ पेड पौधे ऐसे है कि उनकी तारीफ करने पर, उनकी प्रशंसा के पुल वाघने पर, वे खिल उठते हैं और निन्दा करने पर मुरझा जाते हैं । अशोक वृक्ष के लिए कहा जाता है कि वह कामदेव के ससर्ग से स्खलित गति वाली, चपल नयन सयुक्ता, सोलह श्रृंगारे सज्जिता नवयुवती के नुपुर से शब्दायमान सुकोमल चरण का सस्पर्श पा कर ही पल्लवितपुष्पित होता है । लाजवन्ती का विकसित पौधा पुरुष के हाथ का सस्पर्श पाते ही मुरझा जाता है। दक्षिण अफ्रीका के जगलो मे कुछ पौधे ऐसे हैं, जो अपने निकट आने वाले कीट-पतंगो को हजम कर जाते हैं । इन सब उद्धरणो एव वैज्ञानिक प्रयोगो से यह स्पष्टत सिद्ध हो जाता है कि वनस्पति सजीव है, चेतना युक्त है । 'उस में भी मनुष्य एव अन्य पशु-पक्षियों तथा कीडे -मकोड़ो की तरह ग्रात्मा है । 1 यह हम पहले बता चुके है कि पानी की सजीवता को वैज्ञानिको ने भी मान लिया है। फिर भी कुछ लोग पानी को उपयोगी होने के कारण घी- तैल की तरह सजीव नही मानते । परन्तु यह तर्क उपयुक्त नही कहा जा सकता । उपयोगी होने मात्र से ही कोई पदार्थ सजीव से निर्जीव नही हो जाता है । हाथी-घोड़े यादि बहुत से जानवर उपयोगी हैं, फिर भी हम उन्हें सजीव मानते है । दूसरी बात यह है कि घी तेलं एवं पानी मे अन्तर है । दुनिया के सभी तरल पदार्थ निर्जीव नहीं होते । जब कोई आत्मा हथनी के गर्भ में आती है तो वह पहले-पहल तरल रहती है । शरीर विशेषज्ञों की यह मान्यता है कि मनुष्य या पशु के गर्भ मे उत्पन्न होने वाली आत्माए सर्वप्रथम तरल रूप मे ही पैदा - होती हैं । उनमें सघनता एव अंगोपांगो का ग्राकार बाद में वनता है । डे मे रहा हुआ जीव भी कुछ काल तक तरल रहता है । और इन 4 i
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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