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________________ द्वितीय अध्याय के जीव आहार कैसे करते हैं?"भगवान महावीर ने कहा कि "हे गौतम मूल मे स्थित जीव मूल को स्पर्श किए हुए है और वे पृथ्वीकाय से भी प्रतिवद्ध हैं, इसलिए वे पृथ्वीकाय का आहार करते है और उसे अपने शरीर रूप में परिणमन करते है। इसी तरह कद के जीव मूल से प्रतिवद्ध होने से उससे आहार ग्रहण करते है।इसी तरह स्कध के जीव कद से, शाखा के जीव स्कध से और आगे प्रतिगाखा, पत्र, पुष्प, फल एव बीज मे स्थित जीव अपने पूर्व के जीवो से संवद्ध है और वे उसी क्रम से उन से आहार ग्रहण कर के उसे अपने शरीर रूप में परिणत करते है।"रोग का होना तथा रोगिष्ट पौधे को निरोग करना एव उसके योग्य खुराक मिलने से पौधो की अभिवृद्धि होना, इस वात को प्रमाणित करता है कि उसमे जीवन है । ये सब चेतनता के, जीवन के लक्षण है। निर्जीव पदार्थ न कभी रोगी होते हैं, न उनके रोग का इलाज होता है और न उन मे अभिवृद्धि ही होती है। परन्तु, वनस्पति मे यह सव होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उसमे आत्मा-चेतना है। . . वनस्पति मे सजीवता की प्रतीक एक वात यह भी है-उक्त जीवो मे क्रोध, ईर्षा, प्रसन्नता-अप्रसन्नता आदि विकार भी पाए जाते है । प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चन्द्र बोस ने अपनी प्रयोगशाला मे वनस्पति पर प्रयोग कर के तथा उस के वाद जनता के सामने उस का प्रदर्शन करके सारी दुनिया को यह दिखा दिया कि पेड़-पौधो मे मनुष्य की तरह सुख-दुख मे प्रसन्न एव अप्रसन्न होने के विकारी भाव मौजूद है। और इस तरह के प्रयोग कर के उस ने वैज्ञानिको को वनस्पति मे सजीवता मानने के लिए वाध्य कर दिया। उन्हो ने वैज्ञानिक साधनो के द्वारा विज्ञान, वेतामो एव जनता को स्पष्ट दिखा दिया कि वनस्पति $ भगवती सूत्र, शदक, ७, उद्देशक ३।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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