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________________ ७०८ भगवई केवल वोहि बुज्झिहिति, बुज्झित्ता मुडे भवित्ता अगाराश्रो श्रणगारियं पव्वडहिति । तत्थ वियण ग्रविराहियसामण्णे कालमासे काल किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति' । ० से ण तोहिंतो अणतर चय चइत्ता माणुस्स विग्गह लभिहिति । तत्य विणं अविराहियसामण्णे कालमासे काल किच्चा सणकुमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति । से ण तोहितो एव जहा सणकुमारे तहा वंभलोए, महासुक्के, ग्राणए, आरणे । सेण तहितो नंतर चय चइत्ता माणुस्स विग्गह लभिहिति, लभित्ता केवल वोहि वुज्झिहिति, वुज्झित्ता मुडे भवित्ता ग्रगाराओ अणगारिय पव्व - हिति । तत्थ वि य ण ° श्रविराहियसामण्णे कालमासे काल किच्चा सव्वट्टसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति । सेण तहितो अणतर चय चइत्ता महाविदेहे वासे जाई इमाइ कुलाइ भवंति - अड्ढाइ जाव' अपरिभूयाई, तहप्पगारेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पच्चायाहिति, एवं जहा प्रववाइए दढप्पइण्णवत्तव्वया सच्चेववत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्वा जाव' केवलवरनाणदसणे समुप्पज्जिहिति ॥ १८७. तए ण से दढप्पइण्णे केवली अप्पणो तीतद्ध आभोएहिइ, ग्राभोत्ता सम निग्गंथे सद्दावेहिति, सद्दावेत्ता एव वदिहिइ - एव खलु ग्रहं ग्रज्जो । इग्रो चिरातीयाए श्रद्धाए गोसाले नाम मखलिपुत्ते होत्था -- समणघायए जाव' छउमत्थे चेव कालगए, तम्मूलग च ण अह ग्रज्जो ग्रणादीय ग्रणवदग्ग दीहमद्धं चाउरंतससारकतार अणुपरियट्टिए त मा णं प्रज्जो । 'तुव्भं केयि" भवतु आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरियउवज्झायाण अयसकारए श्रवण्णकार अकित्तिकारए, माण से वि एव चैव प्रणादीय प्रणवदग्ग •दीहमद्ध चाउरत ॰ससारकतार अणुपरियट्टिहिति, जहा गं ग्रह | १ अतो अग्रे 'म, स' सङ्क तितादर्शयो निम्नवर्ती पाठो विद्यते - - 'से ग तओहितो अणतर चयं चइत्ता माणुस्स विग्गह लभिहिति, केवल वोहिं बुज्झिहिति, तत्थ वि य ण अविरहियसामण्णे कालमासे काल किच्चा ईसारणे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति', किन्तु सौधर्मादिदेवलोकेषु सप्तभवा दृश्यन्ते--पट्सु दाक्षिणात्येषु कल्पेषु सर्वार्थसिद्धेषु च तेन ईशानकल्पस्य पाठ. न सगच्छते । २. सं० पा० - तमोहितो जाव अविराहियसा मण्णे । ३ ४ ५ ६ ७ 5 ओ० सू० १४१ । पुमत्ताए ( ब ) । ओ० सू० १४२-१५३ । भ० १५।१४१ । तुम केवि (ता) | स० पा०—अरणवदग्गं जाव ससार ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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