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________________ ५४८ ४८ भगवई जयती | पाणाइवाएण जाव मिच्छादसणसल्लेण-एव खलु जयंती ! जीवा ससार दीहीकरेति ॥ ४६. कहण्ण भते ! जीवा संसार ह्रस्सीक रेति ? जयती पाणाइवायवेरमणेण जाव' मिच्छादसणसल्लवेरमणेण-एव खलु जयती ! जीवा ससार ह्रस्सीकरेति ।। ४७ कहण्ण भते ! जीवा ससार अणुपरियट्टति ? जयती | पाणाइवाएण जाव मिच्छादसणसल्लेण-एव खलु जयती | जीवा ससार अणुपरियट्टति ॥ कहण्ण भते ! जीवा ससार वीतिवयति ? जयती | पाणाइवायवेरमणेण जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणेण-एव खलु जयती ! जीवा ससार ° वीतिवयति ।। ४६. भवसिद्धियत्तणं भते । जीवाण किं सभावप्रो ? परिणामो ? जयती | सभावओ, नो परिणामो॥ ५०. सव्वेवि ण भते । भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्सति ? हता जयती | सव्वेवि' ण भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्सति ॥ ५१. जइ ण भते । सव्वे भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्सति, तम्हा ण भवसिद्धियविर हिए लोए भविस्सइ ? नो इणटे समटे ॥ ५२. से केण खाइण' अटेण भते ! एव वुच्चइ-सव्वेवि ण भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्सति, नो चेव ण भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ ? जयति । से जहानामए सव्वागाससेढी सिया-अणादीया अणवदग्गा परित्ता परिवुडा, सा णं परमाणुपोग्गलमेत्तेहि खडेहिं समए-समए अवहीरमाणीअवहीरमाणी अणताहि प्रोसप्पिणी-उस्सप्पिणीहिं अवहीरति, नो चेव ण अवह्यिा सिया। से तेण?ण जयती | एव वुच्चइ-सव्वेवि ण भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्सति, नो चेव ण भवसिद्धिलविरहिए लोए भविस्सइ । ५३. सुत्तत्त भते साहू ? जागरियत्त साह ? जयती ! अत्यंगतियाण जीवाण सुत्तत्तं साहू, अत्थेगतियाण जीवाण जागरियत्त साहू।। ५४. से केणटेण भते । एव वुच्चइ-अत्यंगतियाण'जीवाण सुत्तत्त साह, प्रत्येगति याणं जीवाण जागरियत्त° साहू ? जयती | जे इमे जीवा अहम्मिया अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मक्खाई अहम्म पलोई अहम्मपलज्जणा ग्रहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विह१. वाइएण (ता), सातेण (म)। २ स० पा०—अत्यंगतियाण जाव साहू ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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