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________________ एक्कारस मतं (एक्कारसमो उद्दे सो) ५२६ सेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मे हिं अप्पाणं भावेमाणे वहुपडिपुण्णाइ दुवालस वासाइ सामण्णपरियाग पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए अत्ताण झूसित्ता, सद्धि भत्ताइ अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे काल किच्चा उड्ढ चदिम-सूरिय- "गहगण-नक्खत्ततारारूवाण वहूइ जोयणाइ, वहूइ जोयणसयाइ, बहूइ जोयणसहस्साइ, बहूइ जोयणसयसहस्साइ, वहूरो जोयणकोडीओ, वहूरो जोयणकोडाकोडीयो उड्ढ दूर उप्पइत्ता सोहम्मीसाण-सणकुमार-माहिंदे कप्पे वीईवइत्ता ° बभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ ण अत्यंगतियाण देवाण दस सागरोवमाइ ठिती पण्णत्ता। तत्थ ण महब्बलस्स वि देवस्स दस सागरोवमाइ ठिती पण्णत्ता । से ण तुम सुदसणा | वभलोगे कप्पे दस सागरोवमाइ दिव्वाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्ता तो देवलोगायो आउक्खएण भवक्खएण ठिइक्खएण अणतर चय चइत्ता इहेव वाणियग्गामे नगरे सेट्टिकुलसि पुत्तत्ताए पच्चायाए । १७०. तए ण तुमे सुदसणा | उम्मुक्कबालभावेण विण्णय-परिणयमेत्तेण जोव्वणगम णुप्पत्तेण तहारूवाण थेराण अतिय केवलिपण्णत्ते धम्मे निसते, सेवि य धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए। त सुठ्ठ ण तुम सुदसणा | 'इदाणि पि" करेसि । से' तेणद्वेण सुदसणा । एव वुच्चइ-अत्थि ण एतेसि पलिग्रोवम सागरोवमाण खएति वा अवचएति वा ।। १७१ तए ण तस्स सुदसणस्स से ट्ठिस्स समणस्स 'भगवनो महावीरस्स अतिय एयमट्ट सोच्चा निसम्म सुभेण अज्झवसाणेण सुभेण परिणामेण लेसाहि विसुज्झमाणोहिं तयावरणिज्जाण कम्माण खग्रोवसमेण ईहापूह-मग्गण-गवेसण करेमाणस्स 'सण्णीपुव्वे जातीसरणे'' समुप्पन्ने, एयमट्ठ सम्म अभिसमेति ॥ १७२ तए ण से सुदसणे सेट्ठी समणेण भगवया महावीरेण सभारियपुव्वभवे दुगुणा णीयसड्ढसवेगे' आणदसुपुण्णनयणे समण भगव महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेड, करेत्ता वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एव वयासी-एवमेय भते' | 'तहमेय भते | अवितहमय भते । असदिद्धमेय भते । इच्छियमेय भते । पडिच्छियमेय भते । इच्छिय-पडिच्छियमेय भते । ०–से जहेय तुब्भे वदह त्ति कटु उत्तरपुरथिम दिसीभाग अवक्कमइ, सेस जहा उसभदत्तस्स १ स० पा०-जहा अम्मडो जाव बभलोए। ३. इदाणि वि (अ, क, ख, ता, ब)। औपपातिकादशेषु तद् वृत्तौ च नैष पाठो ४ सोभरणेण (ता)। - लभ्यते, तेन चिन्त्यमिदम् । ५. सण्णीपुव्वजाती (अ, क, ता, ब, वृ)। २. तो चेव (अ), ताओ (ता, व, म), ताओ ६. ° सद्द ° (म)। चेव (स)। ५, स० पा०-भते जाव से ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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