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________________ २७२ भगवई लोगसंठाण-पदं ३ किंसठिए ण भते ! लोए पण्णत्ते ? गोयमा | सुपइट्टगसठिए लोए पण्णत्ते–हेटा विच्छिण्णे', 'मज्झे सखित्ते, उप्पि विसाले ; अहे पलियकसठिए, मज्झे वरवइरविग्गहिए °, उप्पि उद्धमुइगाकारसठिए। तसि च ण सासयसि लोगसि हेद्रा विच्छिण्णसि जाव उप्पि उद्धमइंगाकारसठिय सि उप्पण्णनाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली जीवे वि जाणइ-पासड, अजीवे वि जाणइ-पासइ, तो पच्छा सिझइ' 'बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अत करेइ ।। समणोवासगस्स किरिया-पदं ४. समणोवासगस्स णं भते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स तस्स ण भते ! कि रियावहिया किरिया कज्जइ ? संपराइया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, सपराइया किरिया कज्जइ ।।। ५ से केणट्रेण' भते । एव वुच्चइनो रियावहिया किरिया कज्जइ ? ० सपरा इया किरिया कज्जइ? गोयमा | समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स पाया अहिगरणी भवइ, अायाहिगरणवत्तिय च णं तस्स नो रियावहिया किरिया कज्जइ, सपराइया किरिया कज्जइ । से तेणतुणं ।। समणोवासगस्स प्रणाउट्टिहिंसा-पद ६ समणोवासगस्स ण भते । पुवामेव तसपाणसमारभे पच्चक्खाए भवइ, पुढवि समारभे अपच्चक्खाए भवइ । से य पुढवि खणमाणे अण्णयर तस पाण विहिसेज्जा, से ण भते । त वय अतिचरति ? नो इणद्वे समढे, नो खलु से तस्स अतिवायाए अाउट्टति ।। ७. समणोवासगस्स ण भते । पुवामेव वणप्फइसमारभे पच्चक्खाए । से य पुढवि खणमाणे अण्णय रस्स रुक्खस्स मूल छिदेज्जा, से ण भते ! त वय अतिचरति ? नो इणट्टे समढे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति ।। १. स० पा०-विच्छिण्णे जाव उप्पि । २ तसिं (अ); तसि तेसिं (ता); तस्सि (म)। ३ म० पा०-सिज्झइ जाव अत । ४. समगोवासए (क, स)। ५ अत्य° (अ, व, म, स)। ६. इरिया' (क, ता)। ७ स० पा०-केण?ण जाव सपराइया ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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