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________________ पंचम सतं (अट्ठमो उद्देसो) २२३ हेउ-पदं १९१ पंच' हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-हेउ जाणड, हेउ पासइ, हेउ बुज्झड, हेउ अभिस मागच्छइ, हेउ छउमत्थमरण मरइ।। १६२. पच हेऊ पण्णत्ता, त जहा–हेउणा जाणइ जाव' हेउणा छउमत्थमरण मरइ ।। १६३ पच हेऊ पण्हत्ता, त जहा-हेउ ण जाणइ जाव' हेउ अण्णाणमरण मरइ ।। १६४ पच हेऊ पण्णत्ता, त जहा-हेउणा ण जाणइ जाव हेउणा अण्णाणमरण मरइ ।। १६५ पच अहेऊ पण्णत्ता, त जहा-अहेउ जाणइ जाव' अहेउ केवलिमरण मरइ ।। १६६ पच अहेऊ पण्णत्ता, त जहा-अहेउणा जाणइ जाव' अहेउणा केवलिमरण मरड। १६७ पच अहेऊ पण्णत्ता, त जहा-अहेउ न जाणइ जाव' अहेउ छउमत्थमरण मरड॥ १६८ पच अहेऊ पण्णत्ता, त जहा-अहेउणा न जाणइ जाव' अहेउणा छउमत्थमरण मरइ ॥ १६६ सेव भते । सेव भते ! त्ति' ।। अट्ठमो उद्देसो नियठिपुत्त-नारयपुत्त-पदं २०० तेण कालेण तेण समएण जाव परिसा पडिगया । २०१ तेण कालेण तेण समएण समणस्स भगवो महावीरस्स अतेवासी नारयपुत्ते नाम अणगारे पगइभद्दए जाव" विहरति । तेण कालेण तेण समएण समणस्स भगवो महावीरस्स अतेवासी नियठिपत्ते नाम अणगारे पगइभद्दए जाव विहरति । स्यानाङ्गय पचमस्थाने (७५-८२) एतानि ६ भ० ५।१६१ । अष्टसूत्राणि क्रमभेदेन तथा किञ्चित् पाठ- ७ भ० ५।१६१ । भेदेन लभ्यन्ते । ८ भ० ५१६१ । २ भ० ५।१६१ । ६ भ० ११५१ । ३ भ० ५।१६१ । १० भ० ११४-८। ४ भ० ५।१६१। ११ भ० ११२८८ । ५. भ० ५।१६१ ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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