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________________ तइये सतं (पंचमी उद्देसो) १६६ २१६ मायी ण भते । तस्स ठाणस्स प्रणालोइयपडिक्कते काल करेइ, कहि उववज्जइ ? गोयमा । ग्रण्णयरेसु आभियोगिएसु' देवलोगेसु देवत्ताए उववज्जइ । २२०. अमायी ण भते । तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कते काल करेइ, कहि उववज्जइ ? गोयमा । अण्णयरेसु श्रणाभियोगिएसु देवलोएस देवत्ताए उववज्जइ । २२१. सेव भते ! सेव भते । त्ति' । संगही-गाहा १ इत्थी असी पडागा, जण्णोवइए य होइ बोद्धव्वे' । पल्हत्थिय पलियके, अभियोग विकुव्वणा मायी ॥ छट्ठो उद्देसो भाविय विकुवणा-पदं २२२. अणगारे ण भते । भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वे उब्वियलद्धीए विभगनाणलद्धीए वाणासि नगर समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रुवाई जाणइ-पासइ ? हता जाणइ-पासइ || २२३. से भते । कि तहाभाव जाणइ - पासइ ? अण्णहाभाव जाणइ-पासइ ? गोयमा ! नो तहाभाव जाणइ पासइ, अण्णहाभाव जाणइ पासइ ॥ २२४. से केणट्टेण भते ! एव वुच्चइ - नो तहाभाव जाणइ पासइ ? अण्णाभाव जाणइ-पासइ ? गोयमा । तस्स ण एव भवइ - एव खलु ग्रह रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रुवाइ जाणामि पासामि । 'सेस दसण -विवच्चासे" भवइ । से तेणट्टेण' गोयमा ! एव वुच्चइ - नो तहाभाव जाणइ पासइ, अण्णहाभाव जाणइ ० -पासइ ॥ १ आभियोगेसु ( अ, व, स ), आभियग्गिएसु ४ से से दस विवच्चासे ( अ, व, स, वृ), (ता) । से दस विवरीए विवच्चासे ( वृपा ) । ५ स० पा०-तेरगट्टे जाव पासइ । २ भ० १५१ । ३. बोधव्वे ( अ, क, म, स ) ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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