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________________ यमनाममा ILGS पम माया करती नि मारुतियों को कौन बना गा तथा पातु की राशि में गुव सी पातु की कापिका बमकपी : कौन पमका रहा। पूर्वपत-पाप पदापों का माप पिस प्रकार स मानते मोर सनकी फिर पर्याय (रास) किस प्रकार मानते ! रतर-दम परायों का मार (मुन) उत्पाद म्पय मोर भीम्प स्प मानते। फिर रन की स्वतावापरता पसे पाप मानते। पूर्वपत-माप इनका भी सुनाए। रत्तरपक्ष-सुनिए। पदापका मूस व तो सीप धीम्स, रूप में दी सता. किन्तु रसके पूर्व पर्याप का प्पय पीर A रत्तर पर्याग गत्पाद होता रहता।से-रिसीपल में सुपरमों का पंग (प्रीयामाप) बनवा लिया हा बरों की मारतिकर म्पस मोर कैट के माहारदी उत्पति किम्नु सुपर्दता दोनों प्रबस्थानों में प्रीम्प प स राती " सी प्रकार प्रत्येक पदार्प की प्रस्थापिताखा रकी मारुति करन बासा सबकारमपरासी प्रसार प्रत्येक पर्याय समता भी पापा दोभाती करने से भी हो जाती है। किन्तु पयों का कर्तामर नहीं माना जा सकता। पूषपत-पाप अनादि अमम्स पदार्य पिस प्रकार से मामले * ताप-नम कपत ममापि मनम्ती मामल बार प्रकार म पदाची पाप को मानने / HE-a- rrr-EADIES ARBHEEनमBERRIES
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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