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________________ CERSEXYMARRIERRIERHIXIMIREKKERAKESHA ___प्रश्न-तो क्या जैनमत ईश्वर-परमात्मा को जगत् कर्ता नहीं मानता? उत्तर नहीं मानता। क्योंकि उसमे यह गुण नहीं है। प्रश्न-यदि जगत् ईश्वर ने नहीं बनाया तो क्या जगत् अपने आप बन गया ? .. उत्तर-यदि जीव ईश्वर ने नहीं बनाया तो क्या फिर जीव अपने श्राप बन गया? पूर्वपक्ष- जीव तो अनादि है, इसलिये इस का कर्ता कोई नहीं है। न उत्तरपक्ष इसी प्रकार काल ( प्रवाह ) से जगत् भी म अनादि है। में पूर्वपक्ष-हम देखते है यावन्मात्र संसार के पदार्थ है, - उनका कोई न कोई कर्ता अवश्य है जैसे शालादि। इसी प्रकार जगत् का कर्ता भी ईश्वर अवश्य होना चाहिए। उत्तरपक्ष-संसार में यावन्मात्र पदार्थ हैं उनके पर्यायों का / कर्ता है नतु द्रव्य का / जैसे कुलाल घट का कर्ता है न कि मिट्टी का। इसी प्रकार किसी किसी पर्यायों का कर्ता तो हम म भी मानते है। पूर्वपक्ष-किस को मानते हो? उत्तरपक्ष-उस पर्याय करने वाले जीव को।तथा द्रव्य की बहुत सी पर्यायें स्वयमेय उत्पन्न हो जाती है और फिर उनका स्वयमेव प्रलय हो जाता है जैसे कि वर्षा के समय इन्द्र धनुष यन जाया करता है। अब वेधारे उस इन्द्र धनुष को कौन यना रहा है? तथा यादलों में नाना प्रकार की आकृतियाँ
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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