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________________ READLXXXXDARमालxnxxanta E 1 अनादि अनन्त 2 अनादि सान्त 3 सादि अनन्त 4 सादि सन्ति / पूर्वपक्ष-आप इन चारों का स्वरूप कोई दृष्टान्त देकर समझा। उत्तरपक्ष-सुनिये। जैसे जीव द्रव्य वास्तव में अनादि अनन्त है क्योंकि न तो इसकी उत्पत्ति है और न इसका विनाश है, इस को अनादि अनन्त माना जाता है / यद्यपि भव्य जीव मोक्ष गमन के योग्य है परन्तु उसके साथ लगे हुए कर्म पुदल अनादि सान्त है। क्योंकि कर्मों की आदि तो सिद्ध नहीं है होती किन्तु जब वह उन से छूट कर मोक्षगमन करेगा तव म उस अपेक्षा उस जीव की पर्याय को अनादि सान्त कहा जाता है / जव उस जीव का मोक्ष हो गया तव उस पर्याय की अपेक्षा से उसे सादि अनन्त कहा जाता है / क्योंकि मोक्ष कर्मों के फल से उपलब्ध नहीं होता किन्तु कर्म क्षय से मोक्ष / पद की प्राप्ति होती है इस लिये निर्वाण पद अपुनरावृत्ति वाला माना गया है और फिर वही जीव जव गतागति करता है तब उस में सादि सान्त भंग वन जाता है। जैसे मनुष्य पर्याय को छोड़ कर जीव देव पर्याय को प्राप्त हो गया इस अपेक्षा से-जीव सादि सान्त पद वाला बन गया / अभव्य आत्माओं के साथ कर्मों का सम्बन्ध अनादि अनन्त माना गया है / इस प्रकार पदार्थों के भावों का वर्णन किया गया है किन्तु जो पुद्गल द्रव्य है वह तो अनादि अनन्त है फिर उसका पर्याय सादि सान्त है / जिस प्रकार मिट्टी का पर्याय रूप घट, मिट्टी का पुद्गल रूप तत्त्व अनादि अनन्त है किन्तु उसका पर्याय XanxnxIROINXXRAKRISEASEAXExamxAAR - -.. - -.
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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