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________________ (Ant २मी कापसा (पायेन) शराब नींना रामही पपसा (पषसा) ५ राक महीसा (सापेम) ६ अनुमोदं नही परसा ७ अनुमोद मही पसा (घसा)८ मनमाद मही कायसा (कापेन ) है। इस प्रकार एकादयामंक के मब मांगे पनवे। पिम्त इनको इसी प्रकार कएठ करने की शेखी बसी पावी इस लिए (पपसा) महापसा या दामों शम मार मापा के पारस्पी रखने गये। मिपाठ को पारिये पावकों को इन समझा कि-"वयसाग पचन से "पस पाप से मस्यास्पान मादि करवाई मागे पी सर्व मांगों के विषय इसी मकार भानमा पारित ___२ मा १२ मा मांगे मा एकारण दो पोग से पाने चाहिये। मेले कि-4 महीं मनसा पपसा मी मनसा कापसा नी पयप्ता कापसा बराक नहीं पनसा अपसा कराई ,मही पनसा कापसा राई नी पपसा पपसा मनपाई। मी मरसा पापसा मनमो नी मनसा कापसा इमनुपाद नही पता कापसा ३- प १३- पांगे ३ ए करण पोग सेपाने चाहिए-से किस मी मनसा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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