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________________ २२८ नैनसम्प्रदायशिक्षा । फलवर्ग ॥ इस देश के निवासी सोग बिन २ फलों का उपयोग करते हैं उन सब में मुस्त भान (मोम) का फल है तथा मह फस मन्य फलों की अपेक्षा प्राय हितकारी मी है। इस के सिवाय और भी बहुत से फल है जो कि भनेक देशों में प्रस्तु के अनुसार उत्सव होते तथा लोगों के उपयोग में भाते हैं परन्तु फलों के उपयोग के विषय में भी हमारे बहुत से प्रिय बन्धु उन के (फलों से) गुण और अवगुण से बिलकुछ भनभिज्ञ हैं, इस लिये कुछ मावश्यक उपयोग में आनेवाले फलों के गुणों को लिखते हैं कचे ओम-गर्म, सहे, रुचिकर समा माही हैं, पित्त, वायु, कफ तभा सुन म विकार उत्पन करते हैं, परन्तु कण्ठ के रोग, पायु के प्रमेर, योनिदोप, मण (पाप) और अतीसार में लाभदायक ( फायदेमन्द) हैं। __ पके आम बीर्यवर्षक, कान्तिकारक, तृप्तिकारक तथा मांस और बल को गाने पाते हैं, कुछ कफकारी हैं इस सिमे इन फे रस में थोड़ी सी सौंठ डालकर उपयोग में माना चाहिये। भामों की बहुत सी वातियाँ हैं सभा जाति मेद से इनके पाव भौर गुणों में भी थोड़ा महुत अन्सर होता है किन्तु सामान्य गुण तो (मो कि उपर लिखे हैं) मायः सब में समान ही हैं। जामुन-पाही ( मल को रोकनेवाले), मीठे, कफनाशक, रुचिका, पायुनाशक भौर प्रमेह को मिटानेवाले हैं, उवर विपर में इन का रस मगमा सिरका कामदापको अर्थात् अजीर्ण भीर मन्दामि को मिटाता है । पेर-फेर यपपि भनेक जाति के होते हैं परन्तु मुसतया उन के वोही भेदरें भर्थात् मीठे भौर सहे, पेर कफकारी सभा नुसार मौर सांसी को उस्पम करत हैं, पेपर शासमें कहा है कि-'हरीसकी सदा पर्य, सुपथ्र्य पदरीफसम्" भर्थात् हरर सदा पप्प है और मेर सना फुपथ्य है,। इस साल में भाप रसाप यापर अतिसारम भार कामाग भारि भनक नाम भाम में माम परेवा मारणा में भाग प्रato -न पो मारपार मरी भपरा थी करीम -मपिराबाद में एक प्रसर रे मोर भाग vatanनपा पारेभाय पते सपनारग में एप्ररपा भाम बाहुन उत्तम मारा गाद में पाम भने प्रमर मि-पपई, मामर, रिपरी पा मारणतमा बनाई, अनमानी पर प्रेमभष भी किये साल में Bउत्तम निम्नुपिया र मम्भोग प्रथम जति प्रयच पर में मामलामत उत्तम नानासा भी बहुत मिन्दार॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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