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________________ ( १४५ ) में आना नही चाहते वे धर्म लाभ नहीं उठा सकते इस लिये सब लोगों में धर्म प्रचार हो इस आशा से प्रेरित हो कर व्याख्यान का प्रवन्ध ऐसे स्थान में होना चाहिये जहां पर विना रोक टोक के जनता आ सके और उन में धर्म प्रचार भली प्रकार हो सके श्रपितु साधुयों वा उपदेशकों को ऐसे ग्रामों वा नगरों में जाना योग्य है जहां पर धर्म प्रचार की अत्यन्त आवश्यकता हो क्योंकि वर्तमानकाल में ऐसा देखा जाता है कि श्रोतागणों की उपदेशक जनही प्रायः मतीचा करते रहते हैं किन्तु श्रोतागण उपदेशकों की प्रतिक्षा विशेष नहीं करते जब ऐसे क्षेत्रों में धर्म प्रचार करना चाहें तो यथेष्ट फल को माप्ति होनी दुसाध्य प्रतीत होती है अतएव जिन क्षेत्रों में धर्म प्रचार की आवश्यकता हा उन्हीं क्षेत्रों में धर्म प्रचार के लिये विशेष प्रग्रन्ध करना चाहिये तब ही धर्मोन्नति हो सकती है " 1 " पाठशालाएं" वर्म प्रचार के लिये धार्मिक संस्थाओं ' की अत्यन्त आवश्यकता है क्योंकि जबतक बच्चों की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती तबतक वे धर्म से अपरि
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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