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________________ ( १८१ ) 7 } मामसुन हो मेरा पक्का भय हो मेरा । बादर्श जिंदगीहा मास्म मे ॥ दुनिया के पाणिमऐसा मेरा निबाह हो । सुफ का भी इनकी चाह हो उनका भी मेरी चाह हो !! पू दुनिया की और दूर सब मगाई मज्ञान का मैं सब का एक क भारत का बाणी पवित्र मम का महावीर को सुनाकर || पाति पर करूंगा म मन लगाके अपना । सवा कई धर्म का सब हद का अपना ॥ ज्ञान का मारा | पेरा ॥ सोचना कर भावरमक सूचनायें | (१) मैन पर आत्मा हामि समासार एक पात्र उमी द्वारा सुख सम्सादन किया घासका - (२) बम में ही है जिसका कि माठ करके । म प्रति नार मन विद्यार्थियों को इससे कस्य पड़ना चाहिय ।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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