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( १८७ ) यह अनादि कर्म मल से संसार चतुर्गति में परि भ्रमण करनेवाला अशुद्ध और दुखी मात्मा निज परमास्मसरूप को माप्त कर सदैव मानन्द में मग्न रहा करता है
(३) स्मरण रक्सो.कि. मोक्ष मांगने और किसी के देने से नहीं-मिजावी उमकी माप्ति समारी पूर्ण बीताता और पुरुषार्थ से कम्म मल और उनके कारण नष्ट
पर ही अवलम्बित
(४) स्याद्वाद-सत्यता का स्वरूप है और वस्तु के अनन्त धर्मों का यथार्थ कथन करसक्ता है
(५) जैनधर्म ही परमात्मा का उपदेश है क्योंकि पूर्वापर विरोध और पक्षपात रहित सब जीवों को उनके कल्याण का उपदेश देता है और उसी के अरमात्मा की सिद्धि और छाप इस संसार में है
(६) एकमात्र ही' और 'भी' यही भन्य वर्मा और जैनधम्म का-मेद है यदि-वन सब के भाव मोर उपदेश की इयता की '0' 'भी' से पदल दी जाय तो सनदी सरका समुदाय जैनधर्म है