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( १ ) करते हैं-सो यह कृत्य साधु वृचि से बाहर है इसलिये ! ऐसे पुरुष भी गुरु होने के योग्य नहीं हैं। . जिस धर्म में हिंसा की प्रधानता है और असत्य, मैथुन मादि क्रियाएं की जाती हैं देवों के नाम पर पशु पष होते हैं वह धर्म भी मानने योग्य नहीं है क्योंकिजैसे उन के देव हैं वैसे ही उन देवों के उपासक हैं जैसेकवि ने कहा है कि
फरमाणां विवाहेतु गसभास्तत्र गायकाः परस्परं प्रशंसंति अहोरूप महो ध्वनिः १
अर्थ-ऊंटों के विवाह में गधे बन गये गाने वाले, फिर वह परस्पर प्रशंसा करते हैं कि-पाश्चर्य है ऐसे रूप पर और वह कहते हैं आश्चर्य है ऐसे गाने वालों पर क्योंकि-जैसे बर का रूप हे वैम ही गाने वालों का'मधर खर हैं।
उसी प्रकार, जैसे हिंसक देव हैं उसी प्रकार के हिंसक उन के उपासक है अतएव ! सिद्ध हुया कि-जिस धर्म में व्यभिचारही व्यभिचार पाया ज
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