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आदि के न रहने से सर्वज्ञता का व्यवच्छेद हो भाता है और कर्म आदि के रखने से अपमित्रता सिद्ध होती है सिंह आदि पशुओं की सवारी करने से दयालु पना नहीं रहता इत्यादि चिन्हों द्वारा देव के लक्षण संघटत नहीं होत इसी शिमर्षे देव नहीं माना जाता ।
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जो शुरू हो कर कनक कामनी के त्यागा नहीं है अपितु विषमा नदि हो रहे है तर बोक ज़मीन झगड़े में फंसे हुए है और मांग- परस, मुम्फा तपास्य, अफीम, गोमा, इत्यादि उपमानों में फंसे हुए है फिर इसी के कारण से वे जूमा-मांस-मदिरा परस्त्री- पश्यादि के गामी बन जाते है।
राम द्वार में सदस्यों की तरह उन के मी स्वाय (फ) गुरु पद योग्य नहीं (1 भाब ! किन्तु बन गुरुओं से बहुत स सदस्यमा व्यसनों से बचत है।
फिर वह हर तरह की सवारियों में भी घड़ जावे - लागा आमंत्रणा का स्वीकार फरत है महारे बा - मंदारों के नाम पर हजारों रूप धागों से एक