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साथ ही अपनी भावी होनहार संधान के सम्मुख कोई भी अनुचित पर्याय न होना चाहिए क्यों किन बच्चे अपने मां और बाप के अमुषित पर्या को देव है तब बनके मन से अपने मां और बाप का पूज्य मान इट भावा है फिर वह बनके साथ अनुचित गर्वान करनें यम जावई इतना ही नहीं किन्तु इसंग में पट ये है अपन मां और बाप की शिक्षा को पी प्रवाह नहीं रखते मिसका कि परिणाम आगे क लिए सुम्बद नहीं रहता
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अत एष ! सिद्ध हुआ कि बरहार अनुचित पर्वाण कवि होना चाहिए,
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और जो घर में स्वधर्मी माई मा जाए तो उसके साथ सभ्यता पूर्वक बर्ताव करना चाहिए। जैसे शंस्त्र मायके पर पुष्प की भावक के पधारने पर ल च आब की धर्म पत्नी" at after or पाठे दुओं का दम कर साधी माठ पाद (१९) उनके सामने धनके उन वास्ते गई थी।