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और उनको बन्दना नमस्कार किया फिर उनको आसन की आमंत्रणा की, जब वह शान्ति पूर्वक वैठ गए फिर उन से प्रेम पूर्वक पूछा कि आप कैसे पधारे आप का क्या पयोजन है इत्यादि तब उन्हों ने उत्तर में प्रतिपादन किया कि मैं शख जी के मिलने के वास्ते माया हूं, वह कहां पर हैं
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तव " उत्पल |" ने उत्तर में कहा कि उन्होंने आज पाक्षिक पौषध शाला में पौषध की हुई है वह आज ब्रह्मचारी और उपवास में अकेले ही बैठे हुये हैं इत्यादि, '
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इस कथन से - यह स्वतः ही सिद्ध हो गया किश्राविकाओं का स्वचार्मियों के साथ कैसा पवित्र वर्ताव होना चाहिये ।
श्राविकाए - चारों तीर्थों में से एक तीर्थ रूप है इन का धार्मिक जीवन बड़े ऊंच कोटिका होना चाहिये,
साधु वा साध्वियों की सगति शास्त्रों का स्वाध्याय, पति सेवा गृह कार्यों में कुशलता - धार्मिक पुरुषों वा स्त्रियों से प्रेम अनुकंपा युक्त ईर्ष्या- श्रसूया, कलह,
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