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( १५१ ) पर ! सिद्ध हुमा कि-भोजन शाला (मंडप) में अत्यन्त या की पावश्यकता है।
वया चारपाई वा वस्त्रादि भी बिना यत्न से न रखने चाहिये, विना यत्न ने इन में भी जीवोत्पत्ति हो जाती है और जो खांड यादि पदार्थ घरों में होते हैं वा घृम तलादि होते हैं उन के वर्तन को विना आच्छादन किये न रग्यने चाहिये अपितु सावधानी से इन कार्यों के करने से जीव रक्षा हो सकती है और घर के सामान्न को ठीक रखते हुये, स्वभाव कटु कभी न होना चाहियेस्वभाव सुन्दर होने से हो हर एक कार्य ठीक रह सकता है-सन्तान रक्षा, पशु सेवा, स्वामी आशा पालन, इत्यादि कार्य श्राविकाओं को विना विवेक न करने चाहिये। कारण कि-पत्नियों का देव शास्त्रकारों ने पति ही चत. नाया जा -स्त्रो अपने प्रिय पति की धाज्ञा पालन नहीं करती अपितु बाज्ञा के अतिरिक्त पति का सामना
ती है और असभ्य वताव करती है वह पतिव्रत धर्म से गिरी हुई होती है।
और मर कर भी मुगति में नहीं जाती किन्तु श्राविकाओं,