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________________ ( t५० ) और धर्म में भी भाव बने रथ है इसलिए 1 स्त्रियों को याग्य है कि-पर के काम पिया यस्न न करें जिन घरों में पस्न से काम नहीं किया जाता और प्रमाद बहुत ही बाबा हुआ रहता है उन घरों की वी की वृद्धि नहीं है। सकती इस क्षिप [ भाविकामों को यार है कि घर के काम बिना यह कथा न करें य चुरा काम जैसे बिना दस्व लकड़िये न मनायें, I भाग मय (पाथिय मा थापियां ) मा जकाना पड़ता हैम देख सुन्या में मदें क्योंकि गा मय में बहुत सूत्रमा उत्पन्ना है गा गीस ईधन में बहुत सतावत है इस लिए इन कार्यों में विशेष म कार और मन शाला की दम पर म बादन े पर का अत्यावश्यकता ૐ मान बहुत जीव रम्न जामसी (मी) हुई हामी जब वह भामनादि क्रिपाएं म पर करत समय मोष गिर जाती है करन हावा मामन का बिगाड़न बाकी दादी भ फिर रोग के पम्पम --
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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