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( १३३ ) और श्री भगवान् ने अनेक राजों और रान कुमारों को दीक्षित किया अपने पद् उपदेश से चौदह हजार साधु ३६ हजार भार्याय वनाई लाखों श्रावक बनाये और महाराजा 'श्रेणिका कुणिका चेटक, जिनशत्रु, उदायन, इत्यादि महाराजों की आप पर असीम भक्ति थी एक समय की बात है आप विचरते हुये चपा नगरी के वाहिर पूर्ण भद्र उद्यान (वाग) में पधार गये तय मह गजा कुणिक बड़े समारोह के साथ भाप के दर्शनों को आये मौर उनके साथ सहसों नर नारिये थीं उस मण्य प्राप ने "अर्द्ध मागधी भाषा में सार्व जन उपदेश किया जिसका सागंश यह था कि हे प्रार्यो में जोव का मानता
और अनींव को भी मानता हूं इसी प्रकार पुण्य, पाप. पाश्रव, संवर, निजेरा, वध, और मोक्ष को भी मानता है और प्रवाह से संसार अनादि है पर्याय से प्रादि है सो इस ससार मे छूटने का मार्ग केवल माया दर्शन, सम्यग् ज्ञान, और सम्पग चारित्र ही है मत - इसी के द्वारा जीव मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
हे भार्पो शुभ कर्मों के शुभ ही फल होते हैं। और